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________________ ( १४१ ) क्योंकि गुण और गुणी की समानदेशता असिद्ध है । जैसे रक्तरूपात्मक गुण घट द्रव्य में आश्रित होता है और घट भूतल में आश्रित होता है, रक्त और घट में अभेद मानने पर दोनों को भूतलाश्रित मानना होगा और उस दशा में दो पैर, दो हाथ, दो श्याम भूतल में रक्तघट के अस्तित्व के समय भूतल में भी रक्तिमा का प्रत्यक्ष अप्रतीकार्य हो जायगा । इसके परिहारार्थ रक्तरूप को घटाश्रित और घट को भूतलाश्रित मानना आवश्यक होने के कारण गुण और गुणी की समानदेशता सिद्ध नहीं हो सकती । हाँ, बोद्धमत में गुण ओर गुणी में समानकालता अवश्य है पर केवल समानकालता से अभेद की सिद्धि नहीं हो सकती, क्यों कि यदि केवल समानकालता ही अभेद का साधक होगी तो मनुष्य के कान आदि अङ्गों में भी अभेद हो जायगा, जो कथमपि मान्य नहीं हो सकता है । इस सन्दर्भ में यह ध्यान रखना आवश्यक है कि जिस प्रकार गुण और गुणी में भेद माने विना 'जिस वस्तु को पहले देखा था, इस समय उसे स्पर्श कर रहा हूँ' इस अनुभव की उपपत्ति नहीं होती उसी प्रकार पूर्वकाल में देखी गई वस्तु और वर्तमान में स्पर्श की जाने वाली वस्तु में ऐक्य माने विना भी उक्त अनुभव की उपपत्ति नहीं की जा सकती । इस सम्बन्ध में जो यह बात पहले कही गई है कि दोनों वस्तुओं में व्यक्तिगत भेद होने पर भी एक सन्तान के अन्तर्गत होने से उक्त अनुभव की उपपत्ति हो सकती है, ठीक नहीं है, क्योंकि सन्तानी — सन्तानान्तर्गत व्यक्तियों से सन्तान की पृथक् सत्ता प्रामाणिक नहीं है और सन्तानी अनेक हैं, अतः सन्तान को एक कहना संगत नहीं हो सकता । यदि इस पर यह कहा जाय कि जो वस्तुयें किसी एक धर्म का आश्रय होती हैं तथा उस धर्म के किसी आश्रय का उपादान वा उपादेय होती हैं वे एक सन्तान के अन्तर्गत कही जाती हैं, जैसे पूर्वकाल में दृष्ट घट वर्तमान काल में स्पृश्यमान घट एक धर्म घटत्व का आश्रय तथा उस धर्म के आश्रय पूर्ववर्ती घट का उपादेय एवं उत्तरवर्ती घट का उपादान होने से एक घटसन्तान के अन्तर्गत हैं, तो यह ठीक नहीं है, क्यों कि बौद्धमत में घटत्व आदि को भावात्मक स्थायी धर्म न मानकर अतद्वयावृत्तिरूप माना जाता है पूर्वकाल में दृष्ट घट से वर्तमान में स्पृश्यमान घट अतद्व्यावृत्त नहीं हो सकता क्योंकि पूर्वदृष्ट घट से वर्तमान में स्पृश्यमान घट के व्यक्तिगत रूप से भिन्न होने के कारण तत् होगा पूर्वदृष्ट घट और अतत् होगा वर्तमान में स्पृश्यमान घट, अतः वह स्वयं अतद्व्यावृत्त न होगा किन्तु पूर्वदृष्ट घट ही अतद्व्यावृत्त होगा, फलतः घटत्व द्वारा सन्तान की व्याख्या नहीं हो सकती । इसके उत्तर में यह कहना कि वर्तमान में स्पृश्यमान घट के पूर्वदृष्ट घट से व्यक्तिगत रूप से तद्व्यावृत्त होने पर भी घटत्वरूप से उसके अतद्व्यावृत्त होने Aho ! Shrutgyanam
SR No.034199
Book TitleJain Nyaya Khanda Khadyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashovijay, Badrinath Shukla
PublisherChaukhambha Sanskrit Series Office
Publication Year1966
Total Pages200
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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