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________________ ( १३१ ) की स्थिति अवयव से पृथक न होने के कारण जिसके सम्पर्क से अवयव में कम्प होता है उसका सम्पर्क अवयवी में रोका नहीं जा सकता, यदि किसी एक मात्र अवयव के कम्प के समय अवयवी में कम्प की उत्पत्ति को रोकने के लिये अवयवी को ही कम्प का विरोधी मान लिया जायगा तो किसी भी अवयवी में कदापि कम्प न हो सकेगा, होगा केवल परमाणु में, और उस दशा में कम्प का प्रत्यक्ष असम्भव हो जायगा। इस दोष से इस बात को छोड़कर यदि यह कहा जाय कि अवयवो में कम्प होने के लिये उसके समस्त अवयवों में कम्प पैदा करने वाले कारणों का सन्निधान अपेक्षित होता है, अतः जब किसी एक ही अवयव में कम्प के कारण का सन्निधान होता है उस समय अवयवी में कम्प की उत्पत्ति नहीं हो सकती, तो यह ठीक नहीं है, क्योंकि ऐसा मानने पर कोई मनुष्य कभी भी अवयवी को कम्पित करने का साहस ही न कर सकेगा, क्योंकि अवयवी को कम्पित करने के लिये समस्त अवयवों को कम्पित करने वाले कारणों को एकत्र करना होगा और उन सब कारणों का ज्ञान दुष्कर होने के नाते उस कार्य में मनुष्य की प्रवृत्ति न हो सकेगी। छठी बात जिसकी चर्चा पद्य के उत्तरार्ध में स्पष्ट रूप से की गई है, यह है कि अवयव के कम्प के समय यदि अवयवी को कम्पहीन माना जायगा तो कम्पयुक्त अवयव से जितने भी द्रव्य संयुक्त और विभक्त होंगे उन सबों के साथ अवयवी के बहुत से संयोगज संयोग तथा विभागज विभाग मानने होंगे और उन संयोगों तथा विभागों के पुनर्जन्म को रोकने के लिये उन संयोगों और विभागों को उन्हीं के प्रति अलग-अलग प्रतिबन्धक मानना होगा, और यह कल्पना अत्यन्त गौरवग्रस्त होगी, अभिप्राय यह है कि अवयव के कम्प के समय यदि अवयवी में भी कम्प होगा तो जिन जिन स्थानों से अवयव के संयोग और विभाग होते हैं उन उन स्थलों से अवयवी के भी संयोग और विभाग अवयवी के कम्प से ही उत्पन्न हो जायेंगे और अवयवी के कम्प की निवृत्ति हो जाने के कारण उन संयोगों और विभागों का पुनर्जन्म नहीं होगा, परन्तु अवयव के कम्प के समय यदि अवयवी कम्पहीन रहेगा तब अवयव के संयोगी और विभागी स्थानों से अवयवी के जो संयोग तथा विभाग होंगे उनके प्रति अवयव के संयोग तथा विभागों को ही कारण मानना होगा, फिर अवयव के संयोग तथा विभाग रूप कारण जब तक बने रहेंगे तब तक उनके द्वारा अवयवी के संयोग और विभागों के पुनर्जन्म का संकट बना रहेगा, फलतः उस संकट को टालने के निमित्त अवयवी के संयोग, विभागों को उनकी अपनी उत्पत्ति के प्रति प्रतिबन्धक मानना होगा, अतः अवयव में कम्प होने के समय अवयवी को निष्कम्प मानना ठीक न होगा, और जब कम्पयुक्त अवयव में अवयवी को सकम्प और कम्पहीन Aho! Shrutgyanam
SR No.034199
Book TitleJain Nyaya Khanda Khadyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashovijay, Badrinath Shukla
PublisherChaukhambha Sanskrit Series Office
Publication Year1966
Total Pages200
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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