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________________ (१२७ ) होता, उन दोनों का दर्शन तो उस समय भी होता ही है, कमी केवल इतनी ही रहती है कि उस समय उसके परिमाण के विशेष रूप का दर्शन नहीं होता। अर्थात् अंश के आवरणकाल में यह निश्चय नहीं हो पाता कि इस वस्तु का परिमाण हाथ भर है अथवा दो हाथ है अथवा कुछ और है, तो यह कथन भी ठीक नहीं है, क्योंकि इसका सीधा अर्थ यह होता है कि अंश के साथ आवरण का सम्बन्ध होने की दशा में वस्तु और उसके परिमाण तो आवृत नहीं होते पर परिमाण की हस्तत्व, द्विहस्तत्व-हाथ या दो हाथ का होना-आदि जाति आवृत हो जाती है, किन्तु इस बात को स्वीकृत करना सम्भव नहीं है, क्योंकि ऐसा मानने पर जब समान परिमाण के दो द्रव्यों में किसी एक ही द्रव्य का अंशावरण होगा तब दूसरे द्रव्य के परिमाण में हस्तत्व आदि जाति का ज्ञान न हो सकेगा, कारण कि जाति तो दोनों द्रव्यों के परिमाण में एक ही है और वह अंशावरण वाले द्रव्य के परिमाण में आवृत हो चुकी है। इसके अतिरिक्त दूसरा दोष यह है कि परिमाण की पहचान में पटुता प्राप्त किये हुये व्यक्ति को समान परिमाणवाले आवरणहीन द्रव्य के आधार पर अंशावृत द्रव्य के परिमाण में भी हस्तत्व आदि जाति का निश्चय होता है पर जाति को आवृत मानने पर न हो सकेगा। तीसरा दोष यह है कि जिस द्रव्य का परिमाण चौड़ाई और लम्बाई दोनों ओर हाथ भर हैं और चौड़ाई की ओर आधा भाग ढका है तथा लम्बाई की ओर पूरा भाग खुला है, चौड़ाई की ओर उस द्रव्य के परिमाण की जाति का अर्थात् उसके हाथ भर होने का निर्णय तो नहीं होता पर लम्बाई की ओर होता है। किन्तु जाति को आवृत मानने पर यह निर्णय न हो सकेगा। इस दोष के निवारणार्थ यदि परिमाणगत जाति को द्रव्य की केवल चौड़ाई की ओर ही आवृत और लम्बाई की ओर अनावृत माना जायगा तो जाति को चित्र अर्थात् अपेक्षाभेद से आवृतत्व और अनावृतत्वरूप विरुद्ध धर्मों का आश्रय मानना होगा, फिर जाति को जब इस प्रकार अनेकान्तरूप मानना ही पड़ता है तब द्रव्य को अनेकान्त रूप न मानने में कोई कारण नहीं रह जाता। अतः वस्तु की अनेकान्तरूपता निविवादरूप से सभी को स्वीकार करना अनिवार्य है। एकत्र देशभिदयाऽनुभवेन कम्पा. कम्पावपि प्रकृतवस्तुनि भेदको स्तः । धीविप्लवोपगमतश्च न चेद्विभाग. संयोगभेदपरिकल्पनया च दोषः ।। ५७ ॥ जिस समय किसी वृक्ष के एक भाग में कम्प होता है और दूसरा भाग निष्कम्प रहता है उस समय वृक्ष में कम्पयुक्त भाग की ओर कम्प का और Aho! Shrutgyanam
SR No.034199
Book TitleJain Nyaya Khanda Khadyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashovijay, Badrinath Shukla
PublisherChaukhambha Sanskrit Series Office
Publication Year1966
Total Pages200
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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