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________________ ( १०५) आठवें तर्क में इष्टापत्ति दोष है, क्योंकि यह तर्क परस्परभिन्नता से परस्परभिन्नता की प्रतीति का आपादन करता है और यह प्रतीति अतिरिक्त अवयवी मानने वालों को इष्ट है। इस तर्क के प्रसंग में भेदके निर्वचन को जो अशक्यता बतायी गई थी, वह ठीक नहीं है, क्योंकि भेदत्व को एक अखण्ड अनुगत धर्म मान कर भेद का निर्वचन किया जा सकता है। नवें तक में अनुकूलता दोष है, कारण कि इस तर्क से विपरीतातुमान के द्वारा अव्यापकत्व का साधन होता है और यह अव्यापकत्व अतिरिक्त अवयवी के अङ्गीकारपक्ष में इष्ट है । दशवें तर्क में मूलशैथिल्य अर्थात् अपेक्षित व्याप्ति का भङ्ग दोष है। कारण कि इस तर्क से एक स्थान में असत्त्व के द्वारा अविधेयत्व अर्थात् सर्वत्र असत्त्व का आपादान किया गया है किन्तु यह युक्त नहीं है, क्यों कि जो एक स्थान में असत् होता है वह सर्वत्र असत् होता है, इस प्रकार की व्याप्ति में कोई प्रमाण नहीं है। इस तर्क का उपपादन करते हुये जो यह बात कही गई है कि स्थानभेद से स्वभावभेद नहीं होता वह ठीक है, पर प्रकृत में उसका कोई उपयोग नहीं है, क्योंकि नैयायिक असत्त्व को अवयवी का क्या, किसी भी भाव का स्वभाव नहीं मानते। हाँ, अवयवी का किसी स्थानविशेष में असत्त्व अवश्य होता है, पर उससे उसके सर्वत्र असत्त्व का आपादन वा साधन नहीं हो सकता क्योंकि किसी एक स्थानविशेष में न रहने वाली वस्तु भी स्थानान्तर में रह सकती है। ज्ञानाग्रहावृतिनिरावृतिसप्रकम्पा कम्पविरक्तिमविपर्ययतन्निदानः । तद्देशतेतरसभागविभागवृत्ती चित्रेतररवयवी न हि तत्त्वतोऽन्यः ।। ४८ ।। ज्ञानाग्रह- ज्ञान और अग्रह अर्थात् दर्शन तथा अदर्शन, आवृति निरावृतिआवरण तथा अनावरण, सप्रकम्पाकम्पत्व-कम्पन और अकम्पन अर्थात् सक्रियत्व तथा निष्क्रियत्व, रक्तिमविपर्यय-रक्तत्व और उसका विपर्यय अर्थात् अरक्तत्व, तन्निदान-रक्तत्व और अरक्तत्व के निमित्त अर्थात् रक्तद्रव्य का संयोग तथा रक्तद्रव्य का असंयोग, तद्देशतेतर-तद्देशत्व और अतद्देशत्व अर्थात् तद्देशस्थिति तथा अतद्देशस्थिति, सभागविभागवृत्ति-किसी अंशविशेष से रहना वा अंशनिरपेक्ष होकर समस्त रूप से रहना, चित्रेतर --चित्ररूप तथा चित्रेतर रूप, इन विरुद्ध धर्मों के समावेश से अवयवी की जो अनेकात्मकता प्रतीत होती है वह तात्विक नहीं किन्तु अतात्त्विक है, क्योंकि उक्त विरुद्ध Aho! Shrutgyanam
SR No.034199
Book TitleJain Nyaya Khanda Khadyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashovijay, Badrinath Shukla
PublisherChaukhambha Sanskrit Series Office
Publication Year1966
Total Pages200
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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