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________________ पयनो. म०प० 12424294+PRESEASSESESoes आहारना निमिचे मत्स्य भयंकर नरकने विषे जायछे तेथी सचित आहार मनवडय मार्थवाने युक्त नथी. तण कोण व अग्गी ॥ लवण जलो वा नई सहस्तेहिं॥ न श्मो जीवो सक्को ॥ तिप्पे काम नोगेहिं ॥ ५५ ॥ तृण अने काष्टवडे जेम अग्नि, अथवा हजारो नदीओवडे जेम लवणसमुद्र कृप्त थतो नथी, तेम आ जीव काम भोगोवहे तृप्त यइ शकतो नथी ॥५५॥ तण कोण व अग्गी ॥ लवण जलो वा नइ सहस्सेहिं ।।। न इमो जीवा सक्को ॥ तिप्पेनं अनसारेणं ।। ५ ।। तृण अने काष्ठवडे जेम आग्ने, अथवा हजारो नदीओवडे जेम लवणसमुद्र तृप्त थतो नथी, तेम आ जीव पैसावडे तृप्त यतो नथी ॥ १६ ॥ तण कोण व अग्गी ॥ लवण जलो वा नई सहस्सेहिं ॥ नमो जीवो सक्को ॥ तिप्पेनं गंध मोहिं ॥॥ तृण अने काष्टवडे जेम अग्नि, अथ्वा हजारो नदीओवडे जेम लवण समुद्र तृप्त थतो नथी, नेम आ जीव गंधमाल्यना भोगवडे तृप्त तो नथी ।। ५७ ॥ तण कोण व अग्गी ॥ लवण जलो वा नई सहस्सेहिं ।। NEERS 551255eses+60 स माकन
SR No.034177
Book TitleMurkhshatakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Hansraj Shravak
PublisherHiralal Hansraj Shravak
Publication Year1926
Total Pages154
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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