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-रूकत206.05-05-NE
तो नरंति गारव ॥ रहिया मूलं पुणप्रव लयाणं ॥
मिला देसण सल्लं ॥ माया सझं नियाणं च ।। ३ ।। तेथी गारव रहित माणस पुनर भवरूपी लताओना मूल एवा मिथ्यादर्शन शल्य. मायाशल्य अने नियाणशल्यने उद्धरछे ।। २९ ॥
कप पावोधि मणूसो ॥ आलोश्य निंदिन गुरु सगासे ।
होइ अरेग लहून ॥ नदरिअनरुव नारवहो ॥ ३० ॥ पापनो करनारो एवो पण माणस (पापने ) आलोइने अने गुरुनी पासे निदीने जेम भारनो वहन करनारो माणम भार उतारीने हलवो थाय तेम ते घणोज हलवो थाय ॥३०॥
तस्सय पायचित्तं ॥ जं मग्गविन गुरु वश्स्संति ॥
तं तह अणुसरिअवं श्रणवत्र पसंग नीएण ॥ ३१ ॥ - तेनुं प्रायश्चित जेम मार्गने जाणनारा एवा गुरु उपदेश करे तेम अनवस्थाना प्रसंगनी बोकवाला माणसे अनुसरवू ॥ ३१ ॥
दस दोस विप्प मुक्कं ॥ तम्हा सर्च अगूहमाणेण ॥ जं किंपि कय मक ॥ तं जहवत्तं कद्देई ॥३॥
Presses-MESSESस्क
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