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________________ टेलिक थल एव एटले तेना पछी बनी भविष्यकाळी माया हावडे याग करुं ॥ २४ ॥ जद बालो जंपतो ॥ का मकां च नद्युग्रं जइ ॥ तं तद लोइया ॥ माया मय विप्यमुक्कोन ॥ २२ ॥ जेम बोलतुं बालक सरलपणे कार्य अने अकार्य धुंए कही दे म माया भने नदवडे रहित एव पुरूप सर्व पाप आलोये ॥ २२ ॥ उत्पन्न थती एटले वर्तमान कारनी, अनुत्पन्न बीजीवार न करूं ए रीते आलोण निंदन ने सोही कुनूस || धम्मो सुहस्त चिवई ॥ faari परमं जाइ ॥ घय सिनिव पावला || १३ || जेमीवडे मीलो अनि दीपे तेम सरल बएला माणसने आलोञण शुद्ध वाय अने शुद्धने धर्मस्थिर रहे अने परम निर्वाण एटले मोक्षने पाये ॥ २३ ॥ नहु सिक सल्लो || जह जलियं सासणे धुअरयाणं ॥ सब लो || सिर जीवो धुम्र किलेसो ॥ २४ ॥ शल्य सहित माणस सिद्धि पामे नहि, एम पाप मेल जेना खरी गएला छे एवा ( वीतराग ) ना सासनमां कहेलुं छे; सर्व शल्यने उद्धरीने क्लेश रहित एवो जीव सिद्धि पाये ॥ २४ ॥ popa paaph copy 0.25 25 ক49+1+915
SR No.034177
Book TitleMurkhshatakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Hansraj Shravak
PublisherHiralal Hansraj Shravak
Publication Year1926
Total Pages154
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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