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जीव एकलोज उपजेछे. अने एकलोज नाश पामेछे, एकलाने मरण होयरछे भने एकलोज जीव कर्म रज रहित थइने मोक्ष पामछे ॥१४॥
को करे कम्मं ॥ फलमधिसिक समणहवइ ।।
इक्का जाय मर ॥ पराइकर जा ॥१५॥ एकलो कर्म करेछे, तेनुं फल पण एकलोन भवेछे, एकलो जन्मेछे ने मरेछे ने परलोकमा एकलोज उत्पन्न थायछे ॥१५॥
को मे सासन अप्पा ॥ नाण दसण लस्कयो ।
सेसा मे बाहिरा नावा ॥ संघसंजोग सरकणा ॥१६॥ ज्ञान, दर्शन, लक्षणवंत एकलो मागे आत्मा शाश्वनो छ बाकी मार वाहीरभाव सर्वे मंयोगस्प छे.
संजोग मला जीवेण ॥ पत्ता पुरक परंपरा ॥
तम्हा संजोग संबंधं ॥ सवं तिविदण वो सिरे ॥१७॥ संयोग छे मूल जेनुं एवी जीवे दुःखनी परंपरा पामी ते माटे सर्व संयोग संबंधने त्रिविधे त्रिविधे वामिगळु ॥१७॥
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