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नजीकपमाय मदारि, वीर-नईतमेय मधयणं ॥
जाए मर्यक, कारण निव्वुर सुहाणं ॥१३॥ आ रीते है जीव मैनादरूपी मोटा शउने जीतनार, मोक्ष पमारनार, अने मोक्षना सुखोजें भवंध्य का. रणभूत एवा भाजपपन गय संध्याए जान कर ॥३॥
.. ॥इति श्री चतुःशरण प्रकीर्णकं समाप्तं ॥
इति श्रीमद् वीरभद्राचार्य कृत चतुरशरण प्रकीर्णकं समा.
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