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ससककप
MPARANSFEBहरुसम्म
अरिहंतोने विष भरिहत्तपणु, अने सिद्धोने विषे वळी जे सिद्धपणु, आचार्यमा जे आचार, अने उपाध्यायमा उपाध्यायपणुं ॥.५६ ॥
साइण साहुचरिश्र; देसविरइंच सावय जणाणं ॥
प्रणमन्ने सबेसि, सम्मत्तं सम्मदिहोणं ॥ ५ ॥ माधुओर्नु जे उत्तम चरित्र, अने श्रावक लोकोनुं देशविरतीपणुं, अने समकिनहोष्टर्नु ममकित एसबने हुं अनुमोदुएं ॥५॥
अहवा सबंवि अ विष, राय वयणाणसारि जं सुकम् ॥
कालत्तएवि तिविदं, अणमोएमो तयं सत्वं ॥ ५ ॥ अथवा वितराग वचनने अनुसारे जे सर्व सुकृत त्रणे काळयां ( कर्य होय ) ते त्रणे प्रकारे ( मन, व. चन, ने कायाए करी) अनुमोदीए छीए ॥ ५८ ॥
सुद परिणामो निचं, चन सरण गमाइ थायरं जावो ॥
कुसल पयमोन बंध. वान सुदाणुबंधान ॥ ५ ॥॥ निरंतर शुभ परिणामवाळो जीव चार शरणनी प्राप्ति आदिने आचरतो पुन्य प्रकृतिओने वांधेळे अने ( अशुभ ) बांधेलीने शुभ अनुबंधवाळी करेछे ॥ ७० ॥
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