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विशेषे शमाव्यो छे कामनो उन्माद जेणे, देखेला अने नहि देखेला पदार्थोमो नधी को विरोध जे, अने मोक्षना सुखरूप फळने आपनार एवा अमोघ एटले मफळ धर्मने शरणरुपे अंगिकार कछु- ॥ ४६॥
नरय गइ गमण रोदं, गुण संदोहं पवाइ निस्कोदं ॥
निहणिय वम्मद जोई, धम्मंसरणं पवनोदं ॥४॥ ___ नरक गति गमनने रोकनार, गुणनो समुह छे जेमां एवो, अन्यवादिवढे क्षोभ करवा योग्य नाह एIPI चो, अने इण्यो छ कामरूप सुभट जेणे एबो धर्म शरणरूपे ऑगकार करूंछु ।। ४७ ।।
नासुर सुवन सुंदर, रयणालंकार गारव महग्धं ॥ निदिमिव नेगचदरं, धम्मं जिणदेसि. वंदे ॥ ४ ॥ समर ... संदर
, मोटाइ : महा मुल्य२ वाळो, निधाननी पेठे अज्ञानरूप दारिद्रने हणनार एवा जिनेश्वरोए उपदेशेला धर्मने हु बांदुर्छ ॥ ४८॥
चनसरण गमण संचित्र, सुचरित्र रोमंच अंचित्र सरिरो॥
कय कम गरिदा असुद, कम्मरकय कंखिरो जण ॥ ४ ॥ आ चार शरण अंगीकार करवावडे एकहुं करेलं जे मुकृत तेणे करी थएली विकस्वर रोमराजीए यु
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मोटा एकरीने
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