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भत्त
॥ २५
20 नटे हे हटे
नक्कासे गिदो || अच्य कप्पंमि जायइ श्रमरो ॥ निवाण सुदं पाव ॥ साहू सब सिद्धिं वा ॥ १७० ॥
उत्कृष्टपणे भक्त परिज्ञा आराधीने गृहस्थ अच्युत दामना बारमा देवलोकने व देवता याय अने जो साधु होय तो उत्कृष्टं मोक्षनुं सुख पाये अथवा तो गर्वार्थ मिद्धने विषे जाय ॥ १७० ॥
इय जोइसर जिसवीर ॥ न जलियाशुस्सरिणी निरामो ॥ जनपरि धन्ना || पति जावंति सेवंति ॥ १७१ ॥
एते योगीश्वर श्री जिन वीरस्वापि अने भद्र एवा निर्थकर देते भाषेला अनुसार भक्त परिज्ञा पयन्नो जेओ भणेछे, भावेछे अने मंत्र ने ओ धन्य ॥ १७१ ॥
सत्तरिसयं जिलाणं व || गाहाणं समयवित्त पम्मतं ॥ रातो विदिशा ॥ सासय सोस्कं बह सोकं ॥ १७२ ॥ मनुष्य क्षेत्रने विदे एक छे; तेने विधिपूर्वक आराधन करतो शाश्वतुं
जे
पाये ॥ १७२ ॥ ॥ इति श्री जब परिक्षा सम्मना ॥
गाथाओ कही
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पयन्नो.
या सिद्धांत ने विषे
५। २५ ।।