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भत्त
॥ २१ ॥
न लद जहा लिहतो || सुदिल्लियं धियं रसं सुनं ॥ सोसाइ तालुय रसियं ॥ विदितो मन्नए सोस्कं ॥ १४२ ॥
जेम श्वान ( कुतरो ) हाडकाना रसने सुखे सुखे चाटतो थको खरं सुख नथी पामतो अने ताळवानो रस शोपवेछे पण ते चाटतो सुख माने छे ॥ १४२ ॥
महिला संग सेवि ॥ न लहइ किंचिवि सुदं तहा पुरिसो ॥
सो महाए वरान ॥ सय काय परिस्समं सुरकं ॥ १४३ ॥
ते स्त्रीओना संगने सेवनार पुरुष कंइ पण सुख पामतो नथी तोपण पोताना शरीरनुं परिश्रम थाय छे तेनेज ते वापडो सुख माने छे ॥ १४३ ॥
सुविमग्गितो ॥ छवि केली नत्रि जद सारो ॥
इंदिय विससुतहा || नवि सुहं सुवु विगवि ॥ १४४ ॥
aj मागतां छतां कलेना गर्भमां कोइ ठेकाणे सार नथी तेम इंद्रियोना विपयोमां घणुंए शोधयुं छतुं कई सुख नयी मलतुं ॥ १४४ ॥
सोए पवसिय पिया || चस्कूराएल माहुरो वलिनु ॥ घाण राय पुतो ॥ निदन जीहाइ सोदोसो ॥ १४५ ॥
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पयन्नो.
॥ २१ ॥