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पयन्नो.
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भत्ता कंदर्प व्याप्त एवी अने दोषरुप विषनी वेलडीओ एवी स्वीओने विष प्रयों के काम कलह जेणे एवा
प्रतिबंधने ( आसक्तिने ) स्वभावथी जोता एवा तमे छोडीदो ॥१५४॥ ॥१७॥
महिला कुलं सुवंसं ॥ पई सुयं मायरंव पियरंवा ॥ .
विसअंधा अगणंती॥ उरक समुइंमि पामे ॥१५॥ स्त्री-विषयमा आंधली थइ छती कुल, वंश, पति, पुत्र, माता तेनज पिताने नहि गणकारती दुःख समुद्रने विप पाडेछे ॥ ११५॥
नीयं गमाहिं सुपन हराहिं ॥ नप्पिच मंथर गइहिं ॥
महिलाहिं निन्नयाहिंव ॥ गिरिवर गुरुया विनियति ॥ ११६ ॥ स्त्रीओ नीचगामीनो पक्षे (ढळती जमीनमा जनारी) मारा स्तनवाली पक्षे ( सुंदर पाणीने हरण कर| नारी ) देखवा योग सुंदर अने मंद मंद गतीवाली नदीओनी पेठे मेरू पर्वत जेवा भारे ( पुरुपो) ने पण | भेदी नांखेछ । ११६॥
सुछ वि जियासु सु वि पियासु ॥ सुषु वि परूढ पिम्मासु ॥ महिलासुनुअगीसु अ॥ विसंनं नाम को कुणइ ॥ १७ ॥
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॥१७॥