________________
भत
।। ११ ।।
14570252549
ते आराधना ओना नायक एवा वीतराग भगवान तेनी जे माणस भक्ति न करे ते पुरुष प्रणो पण उ- पयनो. यम करतां डांगरने उखर भूमिने विषे वावेछे ॥ ७३ ॥
बीएण विया सस्सं ॥ इइ सो वास मप्रएण विणा ॥
आराहणमिहंतो ॥ श्रासहयजत्तिमकरंतो ॥ ७४ ॥
आराधकनी भक्ति नहि करतो पण आराधनाने इच्छतो एवो माणस वी विना धान्यनी अने वादला विना वरसादनी इच्छा करेछे ॥ ७४ ॥
उत्तम कुल संपत्तिं ॥ सुह निष्फत्तिं च कुणइ जिणनत्ती ॥ या सजीवस्स || दहुरस्सेव रायगिहे ॥ ७५ ॥
श्री जिनेश्वर महाराजनी भक्ति उत्तम कुलने विषे उत्पत्ति अने सुखनी निष्पत्ति करेछे, जेम राजग्रह नगरने विषे मणीआर शेठनो जीव जे देडको इतो तेने थयुं ॥ ७५ ॥
आराहण पुरस्सर मान्न दियन विसुद्ध लेसान ॥
संसार स्कय करणं ॥ ' मा मुंची नमुक्कारं ॥ ७६ ॥
आराधना पूर्वक वीजे ठेकाणे चित्त नहि आपनार विशुद्ध लेश्या थकी संसारना क्षयने करनार एवा नवकारने तुं मा मुक ॥ ७६ ॥
IRRAAAAe
॥ ११ ॥