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जे जीवोमे दुःख करनारा हल अने उखल ( खांयणीओ ) विगेरे यंत्रो में कराव्यां वली पापे करीने कुटुंब पोष्यं ते सर्वेने अहिंआं हुं निदुछु ॥ ५० ॥ जिस जवण बिंब पुनय ॥ संघ सरुवाइ सत्त खित्ताई ॥ जं ववियं घण बीयं ॥ तमदं प्रमोभए सुकयं ॥ ५१ ॥ १. जिन भवन ( देरासर ). २ जिन प्रतिमा. ३ पुस्तक. ४ चतुर्विध संघ धनरुपी बीज वायुं होय ते सुकृतने हुं अनुमोदुंखुं ॥ ५१ ॥
सात क्षेत्रोने विषे जे
जं सुद्ध नारा दसरा | चरणाई नवन्नव प्पवदलाई || सम्म म पालियाई ॥ तमदं अणुमोयए सुकयं ॥ ५२ ॥
जे भवरुपी अर्णव एटले समुद्रमां वहाण समान शुद्ध ज्ञान, दर्शन, अने चारित्रने सम्यक प्रकारे में पाल्यां होय ते सुकृतने हुं अनुमोदुछु ॥ ॥ ५२ ॥
जिला सिद्ध सुरि नवझाय ॥ साहु सादम्मिय प्पवयलेसु ॥ जं व बहुमाणो ॥ तमदं अणुमोअए सुकयं ॥ ५३ ॥
जिन अरिहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय, साधु, साधर्मिक अने प्रवचनने विषे जे बहुमान में कर्यु होय ते सुकृतने हु अनुमोदुहुं ॥ ५३ ॥
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