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________________ आरा ॥६९॥ FEResses: -ence जे अरिहंतनी जिन प्रीतमानी भावथी पूजा न.करी होय अने में अभक्ति करी होय, तेनो मारे मि-बापयत्रो. च्छामि दुक्कडं हो ॥१०॥ जं विरईन विणासो॥ चेईय दस्त जं विणासंतो॥ अन्नोन विरिकन मे ॥ मिलामि उक्कम तस्स ॥ ११ ॥ चैत्य द्रव्यनो जे में विनाश कर्यो होय अने जे विनाश करता बीजा माणसने उवेख्यो होय तेनो मारे | मिच्छामि दुक्कडं हो ॥ ११॥ । पासायणं कुणंतो॥जंकदवि जिणंद मंदिराश्स ॥ आमनीए न निसि-शे ॥ मिचामि उक्कम तस्स ॥१५॥ जिन मंदिरनी भाशातना करता एवा कोइ माणसने छती शक्तिए न निषेध्यो होय तेनो मारे मिच्छामि दुबई हो ॥१२॥ जं पंचहिं समिहि ॥ तीहिं गुत्तीहिं संगयं सययं ॥ परिपालियं न चरणं ॥ मिलामि कुक्कम तस्स ॥१५॥ जे पांच समिातेवडे अने प्रण गुप्तिवडे सहित एबुं चारित्र निरंतर में न पारयुं होय तेनो मारे मिच्छामि दुबई हो ॥१३॥ स्स्सRE कोड प्रकारे ध्याकम्पमतमान विनिमरुस्स्स
SR No.034177
Book TitleMurkhshatakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Hansraj Shravak
PublisherHiralal Hansraj Shravak
Publication Year1926
Total Pages154
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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