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________________ मरण विराधे छते देवतामा दुर्गति वाय मर्म सम्बवाव पामत् दुर्लभ यह परे भने बळी भावता कामां अनंत संमार घाय।३।। का देव उग्गई का ॥ प्रबोदि केणेव वुई मरणं ॥ केणं अणंतं पारं । संसार हिंमई जीवों ॥३७॥ ___देवनी दुर्गति कयी ? अबोधि [ ? शा हेतुए (पारंवार ) मरण पाय ! कया कारणे संसारमा जीव अनंतकाळ सुधी भमे ॥ ३८॥ कंदप्प देव किविस ॥ प्रनिगा पासुरीअ संमोदा॥ ता देव उग्गा ॥ मरणमि विरादिए इति ॥इए . मरण विराधे छते की देव, किलविष्या देव देह देव । चाकर देव, दास देव, अने संमोहा देव ए पांच दुर्गतिओं थाय ।। २९॥ मिछा सण रसा। सनियाणा किन्द पेसमो गाढा ॥.. रह जे मति जीवा ॥ तेसिं खुलाहा नवे बोडी ॥ ४ ॥ _आ समारमा मिथ्यादर्शनमां रक्क, नियाणासहि जमादानाले जीवो मरण पामे तेभोने पोघि वीज दुर्लभ थायछे ॥४०॥
SR No.034177
Book TitleMurkhshatakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Hansraj Shravak
PublisherHiralal Hansraj Shravak
Publication Year1926
Total Pages154
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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