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________________ चौमासी व्याख्यान ॥ | तेर काठीयार्नु स्वरूप॥ ॥८॥ 434344 | विधि सहित वंदन कर्यु, अने बोल्या के हे मुनि महात्मा ! आपने धन्य छे. संसार अवस्थामां पण अमारा जेवा बलीष्ठोने पण तमोये जीत्या हता. एटले ते समये बाह्य शत्रुओने जीतवानुं तमारामां संपूर्ण बल हतुं अने आ वखते पण तमोये महा बलवान् राग-द्वेषादि शत्रुओने लीला मात्रथी जीती लीधेल छे. माटे हे महाराज ! आपने धन्य छे. आपना तपकर्म अने धैर्यने धन्य छे ! के अनेक प्रकारे परिसहोने जीती मोक्ष सुख मेळववा उजमाल थयेला छो? आवी रीते बहुज प्रशंसा करी पांडवो आगळ चाल्या. त्यारवाद दुर्योधनादि कौरवो आव्या. तेमां उपरोक्त प्रमाणे ध्यानस्थ मुनिने देखी तथा दमदंत मुनि जाणी दुष्ट दुर्योधन तेने हे मुंड! हे पाखंडी! हे दुष्ट! ते दिवसे तुं अमारा हाथमाथी गयो हतो. आजे इंहां ढोंग करी लोकोने धुतवाने भ्रम जाळमां नाखवा उभो रहेल छे. तने धिक्कार छ ! आवी रीते अनेक दुर्वचनोवडे करी तिरस्कार करी, पोताना पासे बीजोरु हतुं ते मुनि उपर फेंकी आगळ चाल्यो. कहेवत छे के यथा राजा तथा प्रजा. पांडवो सारा हता तेथी मुनिनी स्तुति करी, तेथी तेमना परीवारे पण मुनिनी स्तुति करी अने दुर्योधन महा दुष्ट हतो तेथी तिरस्कार करी बीजोरु फेंकवाथी तमाम कौरवोये पण तिरस्कार करी मुनि उपर पथरा नाख्या अने मुनिना उपर चोतरफ एक मोटो पथरानो ढगलो कर्यो. मुनि महाराज मुनिधर्म क्षमा छे, तेम जाणी निंदक स्तुतकने विषे समान चित्त राखी पोताना ध्यानमांज स्थिर रह्या, हवे पाछा ज्यारे पांडवो क्रीडा करीने वल्या त्यारे मुनिने नहि देखता ते ठेकाणे पथरानो मोटो ढगलो देखी लोकोने पूछथु, त्यारे आ सर्व दुष्ट दुर्योधने करेलुं छे. आq कौरवोनुं उद्धृतपणुं जाणी जल्दीथी त्यां आवी पोताना हाथे ज || तमाम पथरा विगेरे दुर करी, मुनिने वंदन करी, भावथी खमावी, पांडवो पोताने स्थाने मया अने दुर्योधनने कयुं के, ॥८ ॥
SR No.034170
Book TitleChaumasi Vyakhyan Bhashantar Tatha Ter Kathiyanu Swarup
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManivijay
PublisherJain Sangh Boru
Publication Year1936
Total Pages186
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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