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नाख्यो अने बोल्यो के, हवे कोण शूरवीर छे, के भव्यजीवने वीतरागनी वाणी सांभलतो बंध करी नीचो पाडे ! ते सांभली भय काठीयो उभो थइने बोल्यो के, खुदाविंदनी आज्ञाथी हुं जवा तैयार हूं, एम कही मोहे रजा आपवाथी ते विविध प्रकारना शस्त्रो धारण करी बखतर पहेरी, हाथमां चलकतु भालु लड् चाल्यो अने ज्यां भव्यजीव धर्म सांभले छे, ते ठेकाणे जइ बोल्यो के, अरे दुष्टो ! इहां शुं कामे मेगा थया छो ? चालो नीकलो इंहांथी, तमारो स्वामी मोहराजा बोलावे छे, एम कही धमकी आपवाथी भव्यजीव डरी गयो, तेथी जल्दी तेना शरीरमां भय पेठो, तेथी तेनी चेतना नष्ट थवाथी विचारखा लाग्यो के, आपणे इहां बधाने भेगा थवानुं शुं जरुर छे, आजनो समय खराब छे, लोकोना मनमां कां कांइ व्हेम आवे के, आ लोको आखो दिवस भेगा केम थाय छे ! वली राजाने खबर पडशे तो दंड करशे, आ साधु पण नवरादांड थइने बेठा छे, तेने कांइ धंधो ज नथी, तेने मान जोइये, माटे सभानो डायरो भेगो करीने पडारो करे छे, पण तेने गतागम नथी के लोकोनी आंखे चडीये छीये, उपदेश देवो होय तो भाबधाने जुदो जुदो आपे, तेमां भेगा करवानुं शुं काम हतुं ! तेने तो श्रावकना घरना रोटला खावा, अने उपदेश देवो ! पण आ धांधल तो आपणने गमतुं नथी, रोज उठीने मेगा थयुं ने नजरे चडवुं, मने तो लागे छे पा के आ साधुए लोको उपर भभूती नाखी लागे छे ! तेथी ज टोळेटोळा इंहां मेगा थाय छे ! बीजे ठेकाणे केम मेगा थता नथी, महा उपाधि ! महा दुःख ! चाल जीव उभो था, वली कांइ बिना वेठनी बला चोटशे ! आवा प्रकारना भयथी धर्म धर्मने ठेकाणे रह्यो, अने व्याख्यान व्याख्यानने ठेकाणे रधुं भय तो पोतानी जयपताकाना वार्जित्रो वगाडवा मांडयो,
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