SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 112
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ | परनी निंदा करनारने देवगुरु धर्मनी निंदा करवी पण सुलभ थइ पडे छे अने तेथी तेनी माठी दशा थाय छ, कडुं छे के, चौमासी व्याख्यान ॥ यत: काठीयार्नु स्वरूप॥ ॥५४॥ -卐卐卐卐卐954 देवनिंदा च दारिद्री, दर्शननिंदा च पातकी । धर्मनिंदा भवेत् कुष्टी, साधुनिंदा कुलक्षयम् ॥१॥ भावार्थ:-देवनी निंदा करनार दरिद्रि थाय छे अने दरिद्रपणाथी पाप करे छे, पाप करवाथी नरकने विषे जाय छे, त्यांथी नीकली दरिद्री थाय छे, आवी रीते देव निंदा कर्याना फलोनी प्राप्ति थाय छे. दर्शननी निंदा करवाथी महापातकी थाय छे, दर्शन निंदा करनार जीव सम्यक्त्वने मलीन करे छे, नाश करे छे, किंबहुना. कोइपण भवने विषे सम्यक्त्व प्राप्त थाय तेवु रहेवा देतो नथी, एटले दुर्लभबोधी थाय छे, धर्मनी निंदा करनार कुष्टि थाय छे. कुष्टिरोगथी अनेक प्रकारना बीजा रोगो पण प्रगट थाय छे अने तेथी पण महा दुःखनी परंपराने पामे छे. साधुनी निंदाथी कुलनो क्षय थाय छे, कदाच पापानुबंधी पुन्योदयथी धारो के वंशवृद्धि होय अने मनमां अभिमान मानी साधुनी निंदा करे तो, पुंछडे पण फल तो मले ज, नहि तो परलोकने विषे तो ते कुलना क्षय करवावालो थाय छे, माटे उत्तम जीवोये उपरोक्त कोइनी निंदा करवी नहि. कारण के निंदा करवाना माठा फलो शास्त्रकार महाराजाये कहेल छे. आजकाल निंदानी वातो तो ओर ज छे. निंदाये कोइपण जीवोने विषे पोतानुं स्थान नहि कयु होय, एषु भाग्ये ज मली शकशे-भाग्ये ज देखाशे तेनुं मूल कारण शुं, तेनी जो तपास करवामां आवशे, तो मालुम पडशे के इर्ष्या ज छे, मत्सर ज छे, बीजं कांइपण समजवू नहि. पारकानुं ज्ञान, पारकानुं मान, पारकानी उन्नति, पारकानो यश, पारकानुं सुख, पारकार्नु 434卐卐卐卐卐 ॥ ५४॥
SR No.034170
Book TitleChaumasi Vyakhyan Bhashantar Tatha Ter Kathiyanu Swarup
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManivijay
PublisherJain Sangh Boru
Publication Year1936
Total Pages186
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy