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शत्रु स्तम्भक
कुन्दावदात-
-चल-चामर - चारु
विभ्राजते तव वपुः कलधौत-कांतम् । उद्यच्छशांक-शुचि-निर्झर-वारि-धारमुच्चैस्तटं सुर- गिरेरिव शात-कौम्भम् ॥30॥
30
कुन्दावदात चल चामर चारुशोभं
मट्ठ
मुच्चैस्तटं सुर गिरेरिव शांत कौम्भम् ।।
घोरगुणाणं
ॐ नमो अट्ठ
ह
क्षुद्रान्
न स्तम्भयर र
11211
-शोभं,
• रक्षा कुरुर स्व
दू
उद्यच्छशांक शुचि निर्झर वारि धार
विभ्राजते तव वपुः कलधौत कान्तम्।