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भूमिका
पावश्यकता हो जाती है, दूसरो पर पहुंचते ही तीसरी सीड़ी दीखने लग जाती हैं। इस तरह वह प्रागे ही आगे बढ़ता जाता है । उसकी प्रगति का कदम अनन्त है।"
जैन धर्म के अनुसार मोक्ष साध्य है और अहिंसा उसका साधन । सर्व महाव्रत अहिंसा को पाने के लिए हैं और अहिंसा का महावत मोक्ष को पाने के लिए। इस बात को प्राचार्यों ने इस रूप में रखा है :
"व्रत एक ही है । सब जिनवरों ने एक ही व्रत निर्दिष्ट किया है और वह है प्राणातिपांतःविरमण व्रत । अन्य सर्व व्रत उसकी रक्षा के लिए हैं।" "अहिंसा ही मुख्य है। सत्यादि के पालन का विधान उसके संरक्षण के लिए है। "अहिंसां धान की तरह है। सत्यादि व्रत उसके संरक्षण के लिए बाड़ों की तरह हैं।" "अहिंसा जल है। अन्य व्रत उसके बांध की तरह "
T 6. इस तरह जैन धर्म के अनुसार ब्रह्मचर्य अहिंसा से निकलता है और उसमें गर्मित है
प्रश्नव्याकरण सूत्र में सत्य को ईश्वर कहा है। वहीं कहा है-"सत्य ही लोक में सारभूत है।' आचाराङ्ग सूत्र में कहा है : “पुरुष ! सत्य की पाराधना कर। सत्य की प्राजा में उपस्थित मेघावी मौत को तर जाता है। प्राचाराङ्ग में ही कहा है-"सत्य में घृति कर।"
उत्तराध्ययन सूत्र में कहा है-'प्रात्मा के द्वारा सत्य की गवेषणा कर'.।" यह सत्य क्या है ? यह सत्य कोई वाचा सत्य नहीं। यह सत्य कोई ऐसा साध्य है जो सब से इष्ट है-आत्मा का सब से बड़ा श्रेयस् है । यह और कुछ नहीं, प्रात्मा का शुद्ध स्वरूपं अथवा मोक्ष है।
ए सत्य की खोज के उपाय को बताते हुए कहा है-"सर्व भूतों से मैत्री करा।" मैत्री का अर्थ है भद्रोह-माव याने हिंसा, झूठ, चोरी, अब्रह्मचर्य और परिग्रह से विरत होना। इस तरह सत्य-प्रात्म-स्वरूप-मोक्ष की गवेषणा अहिंसा मादि से होती है। सत्य-मोक्ष साध्य है और अहिंसा और उसके उपसिद्धांत ब्रह्मचर्यादि साधन हैं। E m mmmsviTEM
इस तरह जैन दृष्टि से ब्रह्मचर्य अहिंसा के गर्भ में समाता है। उसकी पुष्टि के द्वारा वह मोक्ष का द्वार है।
१-स्त्री और पुरुष पृ०१३-१५ का सार
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fiilh २-एक्कं चिय एकवयं निदिटुं जिणवरेहि सव्वेहि क
state पाणाइवाय विरमण-सन्चासत्तस्स रक्खट्टा ॥
Thosar ३-अहिसपा सता मुख्या, स्वर्गमोक्षप्रसाधनी । .. .
.. ... . एतत्संरक्षार्थ च न्याय्यं सत्यादिपालनम् ॥ ४-अहिंसा शस्य-संरक्षणे वृत्तिकल्पत्वात् सत्यादिवतानाम् । अहिंसा पयसः पालि-भूतान्यन्यव्रतानि यत् nah
a ti ६-द्वितीय संवर द्वार: सच्चं भगवंEOSfinitig
05 ७ वही: १.२५ कार
integories जंतं लोग्गमि सारभूयं
nortan t - ८-आचाराङ्ग १२३.३.११२ :
2 परिसा सचमेव समभिजाणाहि, सच्चस्स आणाए से उखटिए मेहावी मार तरह
tra d है-वही ११२।१.७ - सच्चम्मि धिइं कुन्बहा. --
- १०-उत्तराध्ययन ६.२:..
. अप्पणा सच्चमेसेजा .. ११ (क) उत्तराध्ययन ६.२ :
अप्पणा सच्चमेसेजा, मेत्तिं भूएसु कप्पए msairmaneerime (ख) सूत्रकृताङ्ग १.१५.३
रे ? सया सच्चेण संपन्ने, मेत्ति भूएहि कप्पए
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