________________
परिशिष्ट-गाश्री जिनहर्ष रचित शील की नव बाड़
१३३
र1
कमल' झरै उपाडतां घृत बिंदु सरस आहारो रे । ते आहार निवारीय तिण थी वध विकारो रे ७० ॥२॥ सरस रसवती आहरै दूध दही पकवानों रे । .... पाप श्रवण तेहनें कह्यौ उत्तराध्ययन सु जांणो रे.ब० ॥३॥ - चक्रवत्ति नी रसवतो रसिक थयो भदेवों
; काम विटंवण तिण लही वरजि २ नितमेवो. रे ब० ॥ ४॥ रसना जे जे लोलपी' लंपट लयण सवादो रे। मंजू आचारिज नी परै पामें कुगति विषादो रे ब० ॥ ५॥ चारित छांडी प्रमादीयो निज सुत नी. राजवांनी रे।.. राज रसवती वसि पड्यौ जोईसेलममदमाषांनी रे ७० ॥ ६ ॥ सबल आहारै बल वधै वल उपसमय न वेदो रे। ... वेदै व्रत पंडित, हुवै.कहे जिनहरष उमेदो रे ७० ॥७॥
अति आहारै दुष हुवै गलै रूप सुगात । आलस नींद प्रमाद घण दोष अनेक कहात ॥ १॥ घणे आहार विस चढ़ घणेज फाट पेट । ..
धान अमामी ऊरतां हांडी फूट नेट ॥ २॥"
::: (जंबुद्वीप मज्झार एहनी)
पुरुषाकवल बत्तीस भोजन विध कहा। अठावीस नारी तणी" ए पंडग कवल चौवीस ।।... .... इधकै दूषण होइ. असाता दुष घणीए ॥१॥ ब्रह्मवत धरनार थाय तेहनै उणोदरीए गुण घणाए। । 'जीमें जासक जेह तेहनें गुण नहीं अतीचार ब्रह्मव्रत तणाएं ॥२॥
जोइ कंडरीक मुणिंद सहस वरस लगी तप करि करि काया.दही ए। :: तिण भागौ चारित्र आयौराजमें अति मात्रा रसवती लहीए॥३॥
मेवा ने मिष्टान व्यंजन नवनवा सालि. दालि घृत लूचिका ए। • भोजन करि भरपूर सुतौ निस समें हुऔ तास विसूचिका ए॥४॥
वेदन सही अपार आरत रौद्र में मरीय गयो ते सातमी ए। कहै जिन हरष प्रमाण ओछौ जीमीय वाडि कहि ए आठमी ए॥५॥
नवमी वाडि विचार ने पालि सदा निरदोष । पॉमिस तत षिण प्रांणीया अविचल पदवी मोष ॥१॥ अंग विभूषा जे कर ते संजोगी होइ।
ब्रह्मचारी तन सोभव तिण' कारण नवि कोइ॥२॥..... १-कवल २-रसना नौ जे लोलुपीः ३-जोइ सेलग.मदपांनी. रे. ४ बल उपसमइ. ५-भणी ई-अति ७-नरनारि ८–पाल ६ ते १०-तिहाँ
?
Scanned by CamScanner