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कथा - १६ :
सम्भूत - चक्रवर्त्ती
[ इसका सम्बन्ध ढाल ४ गाथा ८ ( पृ० २४ ) के साथ है ]
१
वाराणसी नगरी में भूदत्त नामका चाण्डाल रहता था। उसके दो पुत्र थे । एक का नाम था चित्त और दूसरे का सम्भूति। वहाँ शंख नाम के राजा राज्य करते थे । उनके नमूची नाम का प्रधान था। किसी अपराध के कारण शंखराजा ने नमूची के प्राण वध का हुक्म दिया और उसे वध के लिए भूदत्त चाण्डाल को सौंप दिया । • नमूची के अधिक अनुनय-विनय करने पर भूदत्त चाण्डाल के दिल में करुणा आई और उसने कहा – “मैं तुझे तभी मुक्त कर सकता हूँ जब तू मेरे दोनों पुत्रों को, जो भूमिगत हैं, पढ़ाना स्वीकार करेगा । नमूची ने भूदत्त की बात स्वीकार कर ली और दोनों को पढ़ाने लगा । कालान्तर में नमूची ने दोनों पुत्रों को विविध कलाओं में प्रवीण कर दिया । एक दिन नमूची ने चाण्डाल की पत्नी से व्यभिचार किया। जब दोनों पुत्रों को यह ज्ञात हुआ तब उन्होंने कहा“आप यहाँ से भाग जाइए अन्यथा यह बात हमारे पिता को मालूम हुई तो वे आपको मार डालेंगे ।" नमूची वहाँ से भाग कर हस्तिनापुर आया और वहाँ के चक्रवर्त्ती महाराजा सनतकुमार का प्रधान मंत्री बन गया।
इधर दोनों ही चाण्डाल - पुत्र नगर में गायन करने लगे। उनके मधुर गान से स्त्री-पुरुष मुग्ध होने लगे । अनेक युवतियाँ उनके पास आने लगीं। यहाँ तक की स्पर्शास्पर्श का भी विचार नहीं रहा । इससे नगर के प्रतिष्ठित लोगों ने राजा से शिकायत की। तब राजा ने उन्हें नगर से बाहर निकलवा दिया। इस तरह अपमानित हो उन्होंने अपघात करने का निश्चय किया। वे अपघात करने के लिए पहाड़ी पर चढ़े। वहाँ पहले ही कोई मुनि तप कर रहे थे। उन्होंने दोनों चाण्डाल-पुत्रों को अपघात करते देख उपदेश दिया। मुनि के उपदेश से प्रभावित होकर उन्होंने वहीं दीक्षा स्वीकार की और उम्र तप करने लगे ।
एक समय वे विचरते - विचरते हस्तिनापुर आये। किसी समय 'मास खमन' के पारण के दिन वे भिक्षार्थ नगर भ्रमण करते हुए मुनिवरों को नमूची ने देखा और पहचान लिया ।
मैं भ्रमण कर रहे थे । अपनी पोल खुल जायगी इस भय से नमूची ने दोनों मुनियों को अपने सेवकों से मार-पीट कर उन्हें बाहर निकाल दिया । वहाँ से अपमानित होकर दोनों मुनियों ने अनशन कर लिया। तप के प्रभाव से सम्भूति मुनि को तेजोलेश्या उत्पन्न हुई । क्रोध के आवेश में मुनि ने लब्धि के प्रभाव से सारे नगर को धूम्र बादलों से भर दिया । धूम्र से अच्छादित देखकर नगर की सारी जनता एवं सनतकुमार चक्रवतीं भयभीत हुए । सनतकुमार चक्रवर्ती अपनी रानी श्रीदेवी को साथ ले मुनि से क्षमा-याचना के लिए नगर के बाहर आये और मुनिवरों से बार-बार क्षमा-याचना करने लगे। श्रीदेवी ने भी मस्तक नवाकर मुनिवरों के चरण-स्पर्श किये। श्रीदेवी के सुन्दर केशों के शीतल स्पर्श से सम्भूति: का मन विचलित हो गया। श्रीदेवी के अपूर्व रूप लावण्य पर मुग्ध हो उन्होंने 'नियाना' किया - "अगर मेरी तपश्चर्या का फल मिले तो दूसरे भव में मैं चक्रवर्ती बनूँ । अंत में वे बिना आलोचना के आयु पूर्ण कर देवलोक गये ।
सारे नगर
वहाँ से च्यवकर सम्भूति का जीव ब्रह्मदत्त चक्रवर्त्ती बना । नियाने के कारण वह तप-संयम की अराधना नहीं कर सका और काम-भोगों में आसक्त बना। वह मर कर सातवीं नरक में गया ।
११- उत्तराध्यन सूत्र अ० १३ की नेमिचन्द्रीय टीका के आधार पर
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