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परिशिष्ट-क : कथा और प्रान्त
राजाजीक चले जाने के बाद मल्टि ने प्रत्रज्या ली। राजकमारी होने पर भी वह ग्राम-ग्राम विहार करने लगा और भिक्षा में मिले प.सांव-मूख अन्न द्वारा अपना निर्यात करने लगी। मल्लि की इस दिनचर्या को देखकर दूसरी अनक sitनभी उसके पास दीक्षा लेकर माधु-माग बढीकार किया।
धे मय राजा दोग भी अपनी-अपनी राजधानी में जाकर अपने पुत्रों को राज्य-भार सौंपकर वापस मल्लि के पास श्राप और प्रबजित हुए।
मल्लि तीर्थकर हुई और, प्राणियों के उत्कर्ष के लिए अधिकाधिक प्रयत्न करने लगी। उपरोक्त छः राजा भी उसके बाजीवन सहचारी रहे।
५स प्रकार मगध देश में विहार करती हुई मल्टि ने अपना अन्तिम जीवन विहार में आए हुए सम्मेत गर्वत परं बिताया और अजरामरता का मार्ग साधा।
मपिट का जीवन विकास की पराकाष्ठा पर पहुंचे हुए स्त्री-जीवन का एक अनुपम चित्र है।
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