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परिशिक कथा और
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बहुत समझाया और कहा - "पिताजी ने स्वयं अपने हाथ से हार और हाथी को दे दिया तब से उसे मांगने का क्या अधिकार है ?" स्त्री का हल जयस्त होता है। उसने राजा की अपने आग्रह पर हट्ट रही । अन्त में कोणिक की रानी की बात माननी पड़ी। राजा ने
एक नहीं सुनी।
कुमार को पहला भेजा "हार और हावी ती राज्य की सीमा है, ही रहेंगे। उन्हें राज्य के कप में हाजिर किया जाये।" उत्तर में उ-विल कुमार ने कहा- अगर हिस्सा मिल जाय तो हम हार और हाथी को देने के लिए तैयार है, अन्यथा नहीं ।" कोणिक ने कहा हुई जितना हिस्सा भी नहीं मिलेगा और तुमकी हार और हाथी देना
पड़ेगा।"
हल-विहल कुमार ने देखा कि यहाँ रहने से न हारहाथी ही रहेगा और न राज्य का ही हिस्सा मिलेगा। ऐसा सोचकर दोनों ही अपने नाना चेटक राजा के पास चले गये ।
के साथ
बेट
जब राजा कीणिक की यह माइम हुआ तो उसने राजा नेट की दून के द्वारा यह विल कुमार को मेरे पास भेज दो अन्यथा युद्ध के लिए तैयार हो जाओ चैक किसी भी मूल्य पर शरणागत की रक्षा करेगा। वह हट-विहल को नहीं भेज सकता। आहान स्वीकार्य है।"
वे मेरे पास हमें राजा का मेरे राज्य का
मेजादार और हाथी भेजा
ने उत्तर में
युद्ध के लिए किया गया
कौणिक राजा ने अपने ग्यारह भाइयों के साथ विशाल चतुरंगिणी सेना को लेकर विशाला नगरी पर चढ़ाई कर दी। इधर चेटक भी नौ मही और नौ बिच्छवी, इस तरह १८ देशों के राजाओं की सहायता लेकर कोणिक का सामना करने के लिए तैयार था। परस्पर युद्ध चालू हो गया। पेटक ने कांणिक के इस भाइयों को अपने शक्तिशाली बाणों से मार दिया। दो दिनों में १ करोड़ ८० लाख सेना का संहार हो गया।
कोणिक पकड़ा गया और उसने अपने पूर्व-भव के मित्र चमरेन्द्र को याद किया। समरेन्द्र के प्रकट होने पर कोणिक ने उसे अपनी रक्षा के लिए कहा और चेक को किसी भी उपाय से मार डालने की बात कही। चमरेन्द्र ने उहा मेरा धर्म मित्र है। अतः में उसकी हत्या नहीं करवा सकता किन्तु तुम्हारी रक्षा कर सकता हूँ" ऐसा कह चमरेन्द्र ने उसे वोट दिया। कोणिक उसे पहनकर युद्ध करने लगा।
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पेटक राजा जो वाण मारता था इन्द्र के प्रभाव से यह कौणिक को नहीं लगता था। बेटक के वाणों की निष्फलता देश सेना घबड़ा गई और उसमें भगदड़ मच गई। घंटक भी घबड़ाकर नगर में घुस गया और नगर के फाटक बन्द करवा दिये।
कोणिक ने यह प्रतिज्ञा की कि मैं विशाला नगरी में गदहं से हल चलाऊंगा । उसने नगरी को सेना से पैर दिया। यह बहुत दिनों तक घेरा डाले रहा, पर कोट की तोड़ने का भरसक प्रयत्न करने पर भी वह उसे भङ्ग नहीं कर सका। इससे वह बहुत आकुल व्याकुळ होने लगा।
नैमित्तिक ने बताया कि जब कुछवाडा मागधिका नाम की वेश्या से भ्रष्ट होगा तब चेटक की विशाला नगरी के अधीन हो सकती है।
मागधिका वेश्या की बुलाकर कुटवाडा को वश में करने का आदेश दिया। राजा का आदेश पावर मागधिका घुडा की कृत्रिम श्राविका वन उसके पास थाने जाने लगी।
एक दिन वा वेषा मागधिका वैश्या के अनुरोध से उसके घर गोचरी के लिए गया । वेश्या ने ही साथ के बाहार में ओपथि मिठा रखी थी। उस आहार को लेकर साधु स्वस्थान आया और उसने वह आहार या दिया औषधि के कारण उसे वस्त्र में ही उगने लगी और वह बेहोश हो गया।
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