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परिशिष्ट-फ: कथा ३
कथा-३
आन फल' __ [इसका सम्बन्ध ढाल १ दोहा ६ को टि०५ (पृ०७) के साथ है। एक राजा था। आम्रफल के अत्यधिक सेवन से उसे विशुचिका रोग हुआ। राजा ने बड़े-बड़े चिकित्सक पलाकर अपनी चिकित्सा करवाई। उसका रोग शांत हुआ। तब वैद्यों ने राजा से कहा-"राजन् ! अब आप आम्र फल न खायें। अगर आपने पुनः आम्र फल का सेवन किया तो फिर यही असाध्य रोग होगा।" राजा ने चिकित्सकों की बात मान ली।
कई दिनों के बाद राजा मंत्री को साथ लेकर घूमने के लिए निकला। धूप के कारण रास्ते में उसे थकावट महसूस होने लगी। तब उसने मंत्री से कहा- मैं थक गया हूँ। अतः कहीं विश्राम के लिए ठहरना चाहिये।" पास ही फल से लदा हुआ एक आम्र वृक्ष था। राजा ने उसकी छाया में बैठने के लिए मंत्री से कहा। मंत्री बोला-"राजन् ! आप को आम्र वृक्ष की छाया में भी नहीं बैठना चाहिए। कारण, आप की बीमारी के लिए यह कुपथ्य है। मंत्री के वार-वार कहने पर भी राजा नहीं माना और वह आम्र वृक्ष की छाया में बैठ गया। शीतल हवा बह रही थी। राजा थका हुआ था। बोला : “थोड़ा लेटकर विनाम कर लूँ।" राजा लेटकर विश्राम करने लगा। उसकी आँखें एकटक होकर आम्र फलों को देखने लगीं। मंत्री का कलेजा फटने लगा। वह बोला : “महाराज ! आम्र फलों की ओर देखना वर्जित है।" राजा बोला-"खाना मना है या देखना भी? क्या देखने से भी कभी अनर्थ हुआ है" इतने में हवा के वेग से आमों की एक डाल नीचे राजा की पलथी में आ पड़ी। राजा ने आम उठा लिया। बोला : “ये फल कितने प्रिय थे मुझ को एक दिन। आज इन्हें खा नहीं सकता तो सूंघकर तो तृप्त होऊँ।" राजा आमों को बारबार सूंघने लगा। मंत्री बोला : “महाराज! आम सूंघना वर्जित है।" राजा हँसा : "सूंघने से खाया थोड़े ही खाता है ?" थोड़ी: देर बाद राजा बोला : “आमों की सुगन्ध बड़ी मीठी है। इनका स्वाद कैसा हैचखकर देखता हूँ।” मंत्री ने राजा को ऐसा न करने का अनुरोध किया। राजा ने कहा-"मंत्री ! मैं खाऊँगा नहीं, किन्तु, थोड़ा जीभ पर रखकर इसका स्वाद लेना चाहता हूँ।" फल को काट कर उस का थोड़ा भाग उसने अपने मंह में रख लिया। फल बड़ा मधुर एवं स्वादिष्ट था। राजा का मन नहीं माना और उसने समूचा फल खा लिया।
फल के खाने से उसे पुनः पुरानी असाध्य बिमारी हो गई। उसने बहुत चिकित्सा करवाई किन्तु उस का कुछ भी फल नहीं निकला। उसकी बीमारी बढ़ती गई और वह मर गया।
जिस तरह तुच्छ आम्र फल के लालच में आकर राजा ने सारा साम्राज्य एवं जीवन खो दिया, उसी प्रकार मनुष्य मानुषिक भोगों के लोभ में फस महान् सुखों को खो देता है।
RCTERISTRITIENTS
उत्तराध्ययन सूत्र अ०७: गा०११ की नेमिचन्द्रीय टोका के आधार पर ।
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