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मातमी बाड़ : ढाल ८ : टिप्पणियां
[१२] ढाल गा० १३:
'आचाराङ्ग में लिखा है
........."पणीयरसभोयणभोई यति संतिभेदा संतिविभङ्गा सन्तिकेवलिपण्णताओ धम्माओ भसज्जा ।
जो मिक्ष प्रणोत रसयुक्त आहार का सेवन करता है उसको शान्ति का भड-तिम होता है और तर
-आचा०२ : २४ चौथी भावना HP आहार का सपन करता है उसको शान्ति का भङ्ग-विभङ्ग होता है और वह केवली प्ररूपित धर्म से भ्रष्ट हो जाता है।
यह स्पष्ट ही है कि जो धर्म से भ्रष्ट होता है वह दुर्लभ मनुष्य-मव को भी खोता है क्योंकि मनुष्य-भव और धर्म इन दोनों का पाना बड़ा हो दुर्लम है !
[१३] ढाल गा० १४: । यहाँ पर स्वामीजी ने जो उदाहरण दिया है वह उनको औत्पत्तिको वदि का परिचायक है। सन्निपात रोग में दूध और मिश्री का आहार करन से दाय का प्रकोप होजाने से सन्निपात और भी तीव्र हो जाता है, उसी तरह सरस आहार से विकार की विशेष वृद्धि होती है।
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