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१ - हिव छठी बाड़ में इम कयों,
चंचल
खाधों
मत
२- मन
मन म
पीधों
छठी बाड़
खाधों पीधों विलसीयों, ते मत याद अणाय
ढाल ७ :
दुहा
याद
डिगाय | विलसीयों,
अणाय ॥
भोगव्या,
गमता भोग ते याद कीयां गुण ए बाड़ भांग्यां वरत अजस हुर्वे लोक मांहि ' ॥
नांहि । खंड हुर्वे,
१ – हाव भाव सब्द नारी तणा, त्यांणीयां बधे विषे विकार रे । हवा सब्द आगे सुणींया दुर्वे, त्यांने याद न करणा लिगार रे । छठी बाड़ सुणो ब्रह्मचर्य नीं ॥
ढाक
[ रे जीव मोह अनुकम्पा नांणीए ]
-वर्ण गोरादिक सरीर नों रूप सोभायमान अतंत रे । reat अस्त्री सूं भोग भोगव्या, चीतारे नहीं वरतवंत रे ॥ छ० ॥
१ – छठी बाड़ में ऐसा कहा गया है कि तुम अपने चंचल मन को मत डुलाओ। पूर्व सेवित खान-पान, भोग-विलास का स्मरण मत करो ।
३- गंध
रस
चोवा नें चंदणादिक, मधूरादिक अनेक रे । ते पिण अस्त्री संघातें भोगव्या, ते पिण याद न करणों एक रे ॥ छ० ॥
२–पूर्व में भोगे हुए भोगों के स्मरण करने में कोई हित नहीं है। इस बाड़ का भंग करने से ब्रह्मचर्य व्रत खण्डित होता है और लोगों में अपयश फैलता है।
१ - स्त्रियों के हाव-भाव पूर्ण शब्दों के श्रवण से विषय विकार बढ़ता है। पूर्व में इस प्रकार के सुने हुए शब्दों का जरा भी स्मरण न कर । हे ब्रह्मचारी ! ब्रह्मचर्य की छठी बाड़ सुनो ।
२ - गौरादि वर्ण से युक्त अति सुषुमासंपन्न रूपवती स्त्री से भोगे हुए भोगों को व्रतधारी स्मरण न करे ।
३ - स्त्री के साथ सेवित चोवा, चन्दन आदि अनेक सुगन्धित द्रव्यों की गन्ध एवं विविध मधुर रसों का स्मरण ब्रह्मचारी को नहीं करना चाहिए ।
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