________________
१ – कथा न कहणी
ते जिण कही दूजी जो नारी कथा कहें
हु
वरत
नार नीं,
बाड़ ' । तेह सूं,
विगाड़ ॥
चरत में,
मांय ।
कथा,
नांय ॥
नहीं मन
२ - जे झूल रह्या ब्रह्म त्यांरे विर्षे ते ब्रह्मचारी नें नारी करवी सो
दूजी बाड़ कथा न कहणी नार नीं
ढाल : ३
दुहा
११ - जात रूप कुल देसनीं रे,
नारी
ढाल
[ कपूर हुवें अति उजलो ए ]
वार
कथा कहें जेह | वार कथा करें, तो किम रहें वरत सूं नेह रे । भवीयण नारी कथा निवार, तूं तो दूजी बाड़ विचार रे || आँ० ॥
१ - जिन भगवान ने दूसरी बाड़ में बताया है कि ब्रह्मचारी को नारी की कथा - चर्चा नहीं करनी चाहिए। नारी की कथा करने से व्रत की क्षति होती है।
-चंद मुखी मिरग लोयणी रे, वेणी जां भूयंग | दीप सिखा सम नासिका रे, होठ प्रवाली रे रंग रे ॥ भ० ॥
२ – जो ब्रह्मचर्य व्रत रूपी झूले में झूल रहा है, उसके मन में तनिक भी विषय वासना नहीं होती । ऐसे ब्रह्मचारी को नारी की कथा कहना शोभा नहीं देता ।
१ - जो स्त्रियों के जाति, रूप, कुल या देश सम्बन्धी कथाएँ बार-बार कहता है, उसका ब्रह्मचर्य के प्रति स्नेह कैसे रह सकता है ?
हे भव्य ! तू दूसरी बाड़ का विचार करता हुआ स्त्री-कथा का वर्जन कर ।
२, ३, ४ - मन में विवेक लाकर ब्रह्मचारी ऐसा वर्णन न करे - अमुक नारी चन्द्रमुखी है; मृगनयनी है । उसकी वेणी सर्पिणी की तरह काली है । उसकी नासिका दीपशिखा के सदृश है। उसके अधर
Scanned by CamScanner