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रहें,
जिहां उंदर ते घात पामे ततकाल पामे ततकाल ज्यं नारी नारी तिहां ब्रह्मचारी
हो । प्र०
रहें,
भांगे सीयल रसाल हो ॥ प्र०
१२
६- मंजारी
१० बाड़ सहीत
-
पालीयें,
पूरीजे हो । ० आ सीख दीघी है वो भणी, तूं रहिजे जायगां एकंत हो " ॥ म०
सुध मन खांत
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६--पूर्व क्रीड़ा स्मरण का परिहार ।
७- विषयवर्द्धक आहार का परिहार ।
शील की नब बाढ़
६- जहाँ बिल्ली रहती है, वहाँ यदि चूहे रहे तो वे तुरंत ही विनाश को प्राप्त होते हैं। वैसे ही जहाँ नारी है वहाँ रहने से ब्रह्मचारी के उत्तम शीलत्रत का भङ्ग होना स्वाभाविक है ।
यह मह्मचर्य व्रत की पहली बाढ़ है कि महावारी एकान्त स्थान में वास करे ।
-अति आहार का परिहार ।
९- शरीर-विभूषा और मजार का परिहार ।
१०- अतः मनकी पूरी चौकसी के साथ नव बाड़ सहित ब्रह्मचर्य व्रत का पालन कर । हे ब्रह्मचारी ! - भगवान् ने तुम्हें यह शिक्षा दी है कि तू एकान्त जगह में रह ।
यह ब्रह्मचर्य व्रत की पहली बाड़ है कि ब्रह्मचारी एकान्त स्थान में वास करे ।
टिप्पणियाँ
ये दस नियम निम्न प्रकार हैं:
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१ - एकान्त शयनासन का सेवन स्त्री-सहित मकानादि का परिहार |
२- स्त्री कथा का परिहार ।
३ - स्त्री के साथ एकासन का परिहार ।
४ - स्त्रियों की मनोहार, मनोरम इन्द्रियों के निरीक्षण और ध्यान का परिहार ।
५- स्त्रियों के नाना प्रकार के मोहक शब्दों को सुनने का परिहार ।
[१] दोहा १-४
भगवान् महावीर ने 'उत्तराध्ययन सूत्र ( अ० १६ गाथा १) में वह्मचर्य में समाधि - स्थिरता प्राप्त करने के दस उपाय वतलाए हैं।
करना आवश्यक होता है। इन नियमों का नाम गुप्ति है। गुप्ति जोड़कर इन्हें ही ब्रह्मचर्य के दस समाधि स्थान कहा गया है। परकोटे की तरह है।
गाँव की सीमा पर अवस्थित खेतों की पशुओं से रक्षा करने के लिए उनके चारों ओर वाड़ लगानी पड़ती है और वाड़ों के बाहर साई सोदनी पड़ती है। इसी तरह से जहाँ बाचारी होते हैं, वहाँ सब जगह स्त्रियाँ भी होती है। अतः शील-ब्रह्मचर्य की रक्षा के लिए कितने ही नियमों का पालन अर्थात् रक्षा का साधन - उपाय - बाड़। गुप्तियाँ नौ कही गई हैं। एक अधिक नियम इनमें से पहले नौ नियम वाड़ों की तरह हैं और दसवाँ नियम उनके चारों ओर
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१० - शब्द, रूप, रस, गन्ध और स्पर्श रूपी विषयों के सेवन का परिहार ।
ब्रह्मचर्य-रक्षा के इन उपायों के पालन करने से संयम और संवर में दृढ़ता होती है। चित की चंचलता दूर होकर उसमें स्थिरता आती है। मन, वचन, काया तथा इन्द्रियों पर विजय होकर अप्रमत्त भाव से ब्रह्मचर्य की रक्षा होती है। व्रह्मचारी को इन्हें हमेशा ध्यान में रखना चाहिए।
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