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डाल: १ गा० ४-८
४ - विरख तिण वन में सील रूपीयो,
दि समकित जांण रे ।
तिणरें मूल साखा छें
महावरत तेहनीं,
प्रति साखा अणुवरत वखांण रे || सी०
५- साध साधवी श्रावक श्रावका, त्यांरा गुण रूप पत्र अनेक रे । मधुकर करम सुभ बंधनों, परमल गुण वशेख रे ॥ सी०
६ – उत्तम सुर सुख रूप फूलड़ा, सिव सुख ते फल जांण रे । तिण सीयल विरख रा जतन करों, ज्यू वेगी पांमों निरखांण रे || सी०
सीयल ७- संसार थकी उधरे, जो पाले नव कोटी अभंग रे । तो स्वयंभू रमण जितलों तियों, सेष रही नदी गंग रे ॥ सी०
८ - उत्तराधेन
बंभ
रें 'सोल समाही ठाण कधी तिण विरख ने राखवा, नव बाड़ दसमों कोट जांणः रे ॥
४- जिन शासन रूपी उस बन में वृक्ष है, जिसका सम्यक्त्व रूपी महात्रत जिसकी शाखाएँ हैं और अणुव्रत प्रशाखाएँ ।
शील रूपी मूल है,
५ साधु साध्वी, श्रावक एवं श्राविकाओं के नाना गुण उसके विविध पत्र हैं। शुभ कर्म बन्ध उसपर मँडरानेवाले भ्रमर हैं। विशिष्ट चारित्रिक गुण उसके परिमल हैं।
.६ - दैविक सुख उसके पुष्प हैं और मोक्ष- मुख उसके फल । ऐसे शील वृक्ष की यत्नपूर्वक रक्षा करो, जिससे शीघ्र ही तुम्हें निर्वाणपद की प्राप्ति
हो ।
७ जो नव कोटि से शील का अक्षुण्ण रूप से पालन करता है, संसार से उसका शीघ्र ही उद्धार हो जाता है । वह स्वयम्भूरमण को तैर • चुका। उसके लिए गंगा के समान नदी का तैरना ही अवशेष है १० ।
८ - उत्तराध्ययन सूत्र का सोलहवाँ अध्ययन ब्रह्मचर्य समाधि स्थानक है। वहाँ शील रूपी वृक्ष - के संरक्षण के लिए तव बाड़ व दसवाँ कोट बताया है" ।
टिप्पणियाँ
[१] दोहा १ :
प्रथम दोहे में चोवीस तीर्थंकरों में से नेमिनाथ ( अरिष्टनेमि ) का ही वन्दन किया गया है। प्रन हो सकता है कि अन्य तोर्थंकरों को छोड़कर बाईसवें तीर्थंकर को ही नमस्कार क्यों किया गया ? इसका उत्तर यह है कि चौवीस तीर्थंकरों में से वाईस तीर्थंकर विवाहित होने के बाद ही प्रव्रजित हर थे। केवल मल्लिनाथ और नेमिनाथ ही ऐसे दो तीर्थंकर थे जिन्होंने पाणिग्रहग नहीं किया और कुमार अवस्था में प्रव्रजित हुए । अतः ये दोनों हो सोशंकर वाल- ब्रह्मचारी थे। इन दोनों में नेमिनाथ वाद के तीर्थंकर थे। अतः आसन्न तीर्थंकर होने से शोल के विषय में रचना करते समय कवि ने आदिमंगल के स्थान में एक वाल ब्रह्मचारी के रूप में उनका स्मरण किया है। तीर्थकर मल्लिनाथ का उल्लेख बाद के अन्य प्रसंग में आया है।
नेमिनाथ विवाह के लिये उद्यत हुए। वारात रवाना हुई और तोरण द्वार तक पहुंच गई। ऐसे अवसर पर नेमिनाथ तोरण से वापस लौट पड़े । अपूर्व लावण्यवती कुमारी के साथ विवाह का प्रसंग उपस्थित था, ऐसो परिस्थिति में विवाह न करने का निश्चय कर उन्होंने अहिंसा ही नहीं ब्रह्मचर्य के क्षेत्र
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