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भूमिका निरी
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सगली सांधवियों में हरे सिरे, स्योरा वचन अमोलक रख झरे। REVRATI STREATी त्यारी बाली सगला ने सुखदाई ॥ mins
वरसो लगे चारिश पाली, त्या दोषण दर दिया टाली। 10 ..
त्यांचा जीवा ने दिया समझाई । S RPF घेई बायां री जगती जोडी, येई मगत गई आठ कर्म तोडी।
चोरासी लाख पूरव आउ पाई ॥ 1. जैन धर्म में स्त्रियाँ भी किस प्रकार पाजीवन ब्रह्मचारिणी रह सकती थीं, उसका यह नमूना है । भरत के मोह को दूर करने के लिए ग्राही की तपस्या एक मभिनव प्रयोग है। बाद के तीर्थंकरों के युग में भी ऐसे चरित्र-प्राप्त हैं । माज भी जैन संघ में ब्रह्मचारिणी साध्वियां देखी
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३१-भावदेव और नागला की कि वे की . जैन धर्म में ऐसी स्त्रियों के अनेक उदाहरण मिलते हैं जिन्होंने अपने उपदेश से गिरते हुए मनुष्यों को उबारा । राजीमती ने मोहारूढ़ रथनेमि को जो अमूल्य उपदेश दिया, वह परिशिष्ट-क, कथा २० (१०१०२-३) में दिया गया है । साध्वी राजीमती वर्षा में भीगे कपड़ों को उतार कर उन्हें एक गुफा में सूखा रही थी। ऐसे ही समय रथनेमि ने भी गुफा में प्रवेश किया। राजीमती को वहाँ देख उनका मन मोहाच्छन्न हो गया। वे राजिमती से भोग की प्रार्थना करने लगे। राजिमती ने उन्हें फटकारते हुये कहा- भले ही तू रूप में वैश्रवण सदृश हो, और भोगलीला में नलकूबर या साक्षात् इन्द्र, तो भी मैं तेरी इच्छा नहीं करती। अगन्धन कुल में उत्पन्न सर्प जाज्वल्यमान अग्नि में जलकर मरना पसन्द करते हैं, परन्तु वमन किये हुए विष को वापिस पीने की इच्छा नहीं करते। हे कामी ! तू वमन की हुई वस्तु को पीने की इच्छा करता है। इससे तो तुम्हारा मर जाना अच्छा'।" "अपनी इन्द्रियों को वश में कर । अपनी मात्माको जीत "-इंदियाई वसे काउं, अप्पाणं उवसंहरे (उत्त०२२.४७),।" रथनेमि पर इसका जो असर पड़ा उसको मागम में इस प्रकार बताया गया है : "राजिमती के संयम की ओर मोड़नेवाले सुभाषित को सुनकर रथनेमि उस तरह धर्म-मार्ग पर मा गये, जिस तरह अंकुश से हाथी पाता है। वे मनगुप्त, वचनगुप्त, कायगुप्त हुए। श्रामण्य का निश्चलतापूर्वक पालन करने लगे। दृढ़वती हुए और अन्त में सर्व कर्मों का क्षय कर अनुत्तर सिद्ध-गति को प्राप्त हुए।" Sair इसी तरह का दूसरा प्रसंग भावदेव और नागला का है। वह नीचे दिया जाता है। भावदेव नागला के पति थे। वे साध हो गये थे, पर बाद में विषय-विमूढ हो पुनः नागला का संग करना चाहते थे। नागला की भी फटकार रही-"चाहे कोई ध्यानी हो, मौनी हो, मुंड हो, बल्कल चीरी हो, तपस्वी हो यदि वह अब्रह्मचर्य की प्रार्थना करता है तो ब्रह्मा होने पर भी वह मुझे नहीं रुचता" नागला ने अपने पर्व पति का पतन स किस प्रकार बचाया, H RAINMMERS ITES
.............. १-उत्तराध्ययन २२.४१-४३: जिमि स्वेण संमणो, ललिएण नलकूवरो।
DApahe1 amazाविनाच्छामि, जहऽसि सक्खं पुरंदरो॥ gs
- पक्खंदे जलियं जोई, धूमकेउं दुरासयं।
REE नेच्छंति वतयं भोत्तं कुले जाया अंगधणे ॥
थिरत्थु तेऽजसोकामी, जो तं जीवियकारणा। . इच्छसि आवेडं, सेयं ते मरणं भवे
. २-उत्तराध्ययन २२.४८- ५० T ETT E ..
! ३ उपदेशमाला पू. १३५ : m e mand
.. . रह जइ ठाणी जइ मोगी, जइ मुंडी वक्कली तपस्सी वा। पस्थितो बंभावि न रोचए मझ
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