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शील की नव बाड़
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(६) जीव जो शुभ अथवा अशुभ कर्म करता है, उन कर्मों से संयुक्त हो परलोक को जाता है। उसके दुःख में दूसरा कोई भागी बंटा सकता। मनुष्य को स्वयं अकेले को ही दु:ख भोगना पड़ता है। कर्म, करनेवाले का ही पीछा करता है ; उसे ही कर्म-फल भोग पड़ता है।
(१०) ये काम-भोग त्राणरूप नहीं, शरणरूप नहीं। कभी तो मनुष्य ही काम-भोगों को छोड़कर चल देता है। और कभी काम ही मनुष्य को छोड़ कर चल देते हैं। ये काम-भोग अन्य हैं और मैं अन्य हूँ। फिर मैं इन काम-भोगों में मूच्छित क्यों होता हूँ?
(११) यह शरीर अनित्य है, अशुचिपूर्ण है और अशुचि से उत्पन्न है। यह आत्मारूपी पक्षी का अस्थिर वास है और दु:ख तथा क्लेशही भाजन है। अत: मुझे मानुषिक काम-भोग में पासक्त, रक्त, गृद्ध, मूच्छित नहीं होना चाहिए और न अप्राप्त भोगों को प्राप्त करने की लाल करनी चाहिए ।
(१२) विषय और स्त्रियों में आसक्त जीव स्थावर और जंगम योनियों में बार-बार भ्रमण करता है ।
(१३) जो सर्व साधुओं को मान्य संयम है, वह पाप का नाश करनेवाला है। इस संयम की आराधना कर बहुत जीव संसार-सागर से पार हुये हैं और बहुतों ने देव-भव प्राप्त किया है५ । म
(१४) जैसे लेपवाली भित्ति लेप गिराकर क्षीण कर दी जाती है, उसी तरह अनशनादि तप द्वारा अपनी देह को कृश करना चाहिए।
१-(क) उत्तराध्ययन १८.१७ :
तेणावि जं कयं कम्मं, मुहं वा जइ वा दुहं। ॐ
कम्मुणा तेण संजुत्तो, गच्छइ उ परं भवं ॥ (ख) वही १३.२३ :
न तस्स दुक्खं विभयन्ति नाइओ, न मित्तवग्गा न सुया न बंधवा । मा एक्को सयं पञ्चणुहोइ दुक्खं, कत्तारमेव अणुजाइ कम्म" २-सूत्रकृताङ्ग २, १.१३ : ..,
इह खलु कामभोगा णो ताणाए वा णो सरणाए वा । पुरिसे वा एगया पुचि कामभोगे विप्पजहइ, कामभोगा वा एगया पुब्विं
पुरिसं विप्पजहन्ति । अन्ने खलु कामभोगा अन्नो अहमंसि । से किमंग पुण वयं अन्नमन्नेहि कामभोगेहि मुच्छामो ? ३-(क) उत्तराध्ययन १६.१३ :
इम सरीरं अणिच्चं, असई असुइसंभवं ।
असासयावासमिणं, दुक्खकेसाण भायणं । (ख) ज्ञाताधर्म कथाङ्ग ८:
तं मा णं तुम्भे देवाणुप्पिया, माणुस्सएमु कामभोगेस ।
सज्जह रज्जह गिज्झह, मुज्झह अज्झोववज्जह ॥ ४-सूत्रकृताङ्ग १, १२.१४ : - जमाहु ओहं सलिलं अपारगं, जाणाहि णं भवगहणं दमोक्ख ।
PORE र 'जंसी विसन्ना विसयंगणाहि, दुहओऽवि लोयं अणुसंचरन्ति॥ ५-वही १, १५. २४ : - मयं सव्वं साहणं, तं मयं सल्लगत्तणं ।
साहइचाण तं तिण्णा, देवा वा अभविसु ते ॥ -वही १, २।१.१४ :
धुणिया कुलियं व लेववं । किसए देहमणसणा इह ॥
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