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कान्ह
पन्द्रहवीं सदी
[ ६५ रिद्धि वृद्धि मगल सिरि दियो ॥७५।।
इति सप्तमी भाषा । इति श्री गौतम स्वामिरास समाप्ता। लिखित ब्रा० देवीदासेन सा. पदार्थ पठनार्थम् ।
___ महौ० विनयसागर जी गुटका नं. ८६ ॥
वि० इस गुटके में इसके बाद संजयि अध्ययन, अर्थ सहित सं० १५६२ श्रावण सुदि १२ सा० पदार्थ पठनार्थ लिखा हुआ होने से उपरोक्त रचना का भी लेखनकाल १५६२ संभव है।
(६०) कान्ह (श्रीमाल छांडाकुल) (१०५) अंचल-गच्छनायक गुरू रास गा० ४०
सं० १४२० खंभात आदि-रिसह जिणु नमिवि गुरु वयण अविचल धरी,
पंच परमेट्टि महमतु मनि दृढु करी। अंचल गच्छि गछराय इणि अणुकमिई,
सगुरु वन्नेसु गुरु भत्तिभरवि क्कमिइं ॥१ अन्त-खभाइत वर नयर मझारि, दीवाली दिनि अनु रविवारे,
संवत चऊद विसोत्तरइ ए ॥३७ श्रीमाली छांडा कलि जाउ, कान्ह तणइ मनि लागउ भाउ, नवउ रासु सो इम करह ए ॥३८ तस घरि विलसइं मंगल माल, तास कित्ति पसरई चउसाल, महिमंडलि सा रुण-झणइ ए ||३६ लच्छी तास सयंवरि पावइ, एउ रास जो पढइ पढावइ, कान्ह कवीसर इम भणइ ए ॥४०.
इति श्री गच्छ नायक गुरू रास
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