________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
जैन कवियों और उनकी मरु-भाषा की रचनाओं का विवरण भी काफी बड़ी संख्या में था अतः वह नाम सार्थक नहीं लगा । यद्यपि १५वीं शताब्दी तक मरु और गूर्जर दोनों प्रान्तों की भाषा एक ही थी पर १६वीं शताब्दी से उनका अन्तर स्पष्ट होता गया व बढ़ता गया, इसलिए दोनों भाषाओं का संयुक्त नाम 'मरु गुर्जर' कहना या लिखना ज्यादा उचित हैं । इसी कारण इस ग्रन्थ का नाम मरु गूर्जर कवि और उनकी रचनाएं रखा गया है ।
जैन गुर्जर कवित्र ग्रन्थ का प्रकाशन जैन श्वेताम्बर कॉन्फरेन्स की ओर से हुआ था, इसलिए मैंने भी अपने ग्रन्थ को प्रकाशित करने के लिए कॉन्फरेन्स को लिखा पर उक्त संस्था ने इसके लिए केवल १ हजार रु. ही प्रार्थिक सहयोग श्री ताजमल जी बोथरा की प्रेरणा से स्वीकार किया जिससे पूरा ग्रन्थ प्रकाशित होना संभव ही नहीं था । अतः यह प्रथम भाग ही प्रकाशित होने पा रहा है ।
ग्रन्थ को प्रेस में देने के बाद कागजों के भाव आकाश को B गये तथा छाई भी काफी बढ़ गयी इसलिए बीच में काफी समय तक मुद्ररण रुका रहा श्रतः प्रकाशन में काफी देरी हो गई है। आगे के भागों का प्रकाशन तो भविष्य पर ही निर्भर है ।
इस ग्रन्थ को तैयार करने में मेरे सहयोगी भ्रातृ पुत्र भंवर लाल तथा अन्य कई व्यक्तियों का सहयोग प्राप्त हुआ है और प्रकाशन में कॉन्फरेन्स व श्री ताजमल जी बोथरा का सहयोग मिला इसके लिए उनका व अन्य समस्त सहयोगियों के प्रति मैं प्राभार प्रगट करता हूँ । प्रस्तुत ग्रन्थ के आगे के भाग भी शीघ्र प्रकाश में आयें, यही शुभ कामना है ।
- अगरचन्द नाहटा
For Private and Personal Use Only