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मरू-गूर्जर जैन कवि (३७) अज्ञात (४७) श्री थूलिभद्र मुनि (मदन युद्ध) वर्णना बोली गा० ८ प्रादि-सुरराय समहरि करवि निज्जिय, चक्कवइ हरि हलधरा ।
पायालि पन्नघ सेव मन्नहि, कवण मत्त नरेसरा ॥ तसु कुसुम सरि जो दण्ड खण्डिवि, बाण पसरु विहडिउ ।
सिरि थूलिभद्दिण तेम निज्जिउ, जेमू कहवि न निज्जिउ ॥१ मन्त-कोवि नियतणु तविण सोसइ, कुविन रनिहिं निवसएं ।
किवि कोवि पिइ सेवालु भक्खइ, सोवि तू प्रासंकए । जो वेस धरि चउमासि निवसवि, सरण भोयण सत्तउ । तसु थूलभद्दह पाय पणमहु, जिणि मयशु नहु जित्तओ ।।८
(सं० १४३७ लि.
(३८) अज्ञात
(४८) श्री शालिभद्र रेलुआ गा०९ आदि-राजगृही उद्यान वनि कमि वीरु सम्सरिउ,
धन एसउ सालिभद्द. निय नियरिय मनु हरषियउ
त्रिभुवन गुरु पूछियउ वंदाविसु सुभद्र ॥१ अन्त -धनउ अनए सालिभद्र तुम्ह गेहि पहूता तई नहु वंदिया कांई। अणसणु लेवि भागया पहुता देवलोकिहिं कोड़िय कम्म घणांई ।।
जे० भ० प्रति (प्रतिलिपि - अभय जैन ग्रन्थालय)
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