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मरू-गर्जर जैन कवि और उनकी रचनाएं
पध
ग्यारहवीं शताब्दी (१) पं० धनपाल (महाराजा भोज के सभा पंडित)
(1) सत्यपुरोय महावीर उत्साह पद्य १५
प्रादि:--जिणव जेण दुट्ठ कम्म, बलवंता मोडिय,
चउ कसाय पसरत जेण, उम्मूल वितोडिय, तिहुयण-जगडण-मयण सरहि, तणु जासु न भिज्जइ।
इयर नरहि सच्चउरि-वीरू, सो किम जगडिज्जइ ॥१॥ अन्त:-कोरिट, सिरिमाल, धार, आहाडु, नराण,
अहिलवाडउ, विजयकोट्ट, पूण पालित्ताणु । पिक्खिवि ताव बहुत्त ठाम, मणि चोज्जु पईसइ, ज अज्जवि सच्चरि वीरू, लोयणिहि न दीसइ ॥१३॥ सहस्सेण वि लोयणह, तित्थु न होई नियतह, क्यण सहस्सेहि गुणनतुट्छु, निट्ठियहि थुगतह । एक्क जीह 'धणपालु भणइ, इक्कु ज मह नियतणु, कि वनउ सच्चरि-वीरू, हउ पुणु इक्काणा ॥१४॥ रविव सामि पसरतु मोहु, नेहुंड्य तोडहि, सम्मदंसणि नाणु चरणु, भडु कोहु विहाडहि । करि पलाउ सच्चरि-वीरू, जइ तुहु मणि भावइ, तइ तुटुइ 'धणपालु जाउ, जहि गयउ न आवइ ॥१५॥
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