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आदि
इति श्री चित्रसंभूति कुलकं समाप्तं
प्रति-गुटका पत्र २५३-५७।। पं० १८ अ० २६ वि० इसी प्रति में सीता चौर, श्रेणिक चौ० [ सोमविमल सूरि सुरप्रिय स० श्रुत षटत्रिशिका ( पासचन्द), ब्रह्मचर्य ( पासचन्द ) व नवतत्व वाला है ।
समाधि कुलक
अन्त
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सोमविमल सूरि के दस दृष्टान्त त्रु० है ।
अन्त-इणि परि दस बोले दोहिलउ नरभव जाणी । सील समकित पालउ अज वलाउ निज प्राणी श्री हेमविमल सरि सुगुरु वचनि मनि श्राणि श्री सोमविमल सूरि जंपर एहवी वाणी ।
इति दम दृष्टान्त
मरू- गूर्जर जैन कवि
( २३० ) इलापुत्र कुलक गा० ६१
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सं० १६५३ लि०
सं० १६५४ से पूर्व
संति सुहंकर सोलिम जिणवर, संति जिरणेसर ध्यावउजी । पुहवि प्रगट नर अति अचरिज कर, इलापुत्र गुण गावउजी ॥ १ ए भव नाटक नी परि बुझइ, जे हुई भवियण प्राणीजी । साधु सुसंगति सयम सूद, मुझ इन विषय नबिनांणी जी । (आ.)
- आप तरीनइ पांचइ तारचा, अविगति पंथ लगाया ।
-
निरमल चित्त निरंजन नितनित, विनइ भगति गुण गाया रे ॥६