________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
१४४ ]
मरू-गूर्जर जैन कवि तास पाटे मुनि सुदर सूरि, लोध्या नामें दुरित जाय दूरि । वादी वृद विदारण सीह, श्री रतणसे खर सूरि नमूनिसदीह
तसु पटे सूरि गिरि सुर तरु समो, श्री लक्ष्मीसागर सूरि नर
नमो। तसअ पटे गुरु गिरमां निलो, श्री सुमति साधु सूरि तपगछ
. तिलो ।।३३ संप्रति सूरि सिरोमणि सरइ, श्री हेमविमल सूरि सघ मंगल
करइ ।
वादं अखडित पंडित जाण, श्री धनदेव सुधारस बानि ॥ ३४ मोह महिपति मोडित मदा, सुरहंस पइ प्रणमो सदा । ते गुरु सीस ईस अव(त)र्या, मदन महाभट हेलां हर (या) ॥३५ विद्या चउद वितंडा वाद, उन्मद वाद उतार्या नाद । दोन उगमते उजम परा, विद्यारत्न गुरु वांदो नरा ॥३६ तस पय कमल विमल चित धरी, विद्यारत्न कहे इणि परि । संवत पनरस्य तहोत्तरी रिष, मागसिर वदि नवनि मणि हरिष । सुर धरणीधरधरणी जास, जां द्र न चलई अंबर वास । तां प्रतिपो पृथ्वी तसि एह, मंगल माला गिरुउ गेह ॥३८ पुण्य ऊपरि ए कीयो प्रबंध, पाप तणा टालिउ समंध । भणतां गुणता सुणतां सार, ऋद्धि वृद्धि मंगल जयकार ।।३६
इति श्री मंगल कलश रास संपूर्ण ।। लेखन काल - संवत् १६६४ वर्षे च इत्र सुदि १४ बुध वासरे श्री देवगिरि
नगरइ सुश्रावकि संघवी जगसी भार्या हर्षीई तस्य पुत्र अण्य
For Private and Personal Use Only