________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
१२० ]
मरू-गूर्जर जैन कधि ॥ इति श्री कात्तिरत्न सूरि चउपई ।। ले० स. १६३७ वर्षे शाके १५८२ प्र. ज्येष्ठ मासे शुक्ल पक्ष पेष्टातिथौ गुरुवासरे । श्री महिमावती गध्ये श्री वृहत्खरतर गच्छे श्री जिनचद्र सूरि विजयराज्ये । संखवाल गोत्रीय संघ भार धुरंधर साह केल्हा तत्पुत्र सा० धन्ना तत्पुत्र सा० बरसिंघ तत्पुत्र सा० कुवरा तत्पुत्र सा० नव्वा तत्पूत्र सा. सुरताण तत्पुत्र सा० खेतसीह भ्रातृ साह चांपसी पुस्तिका करापिता पुत्र पुत्रादि चिरं नद्यात शुभं भवतु ।
[श्री पूज्य जी के संग्रहस्थ गुटका] प्र० सं० जे० का० सं० पृ० ५१
(१६६) विनयचूला गणिनि (१९६) हेमरत्नसूरि फागु गा० २२
.. १६वीं शती का पूर्वार्ध
आदि - अहे जुहारिसु जगत्रय अधिपति, मुनिपति सुमति जिणंद,
अहे गायस् रंगि धनागम, आगम गच्छ मुणिंद ॥१ - श्री हेमरत्नसरि भगतिहिं, विगतिहिं गुण वर्णवेसु,
गुरुपदपंकज सेविय, जीविय सफल करेसु ।।२ अन्त-विनय मेरु अनुकूला, चूला गरिम निवास, ...
.....'मम'.'लहर, मणहर देसण भास ॥२१ इणि परि सुहगुरु सेवउ, केवउ नहीं भव वासि, दुर्लभ नरभव लाघउ, साघउ सिद्धि उल्हास ॥२२
For Private and Personal Use Only