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दुगर
पंद्रहवीं सदी
[१०३ पढिसिइं गुणिसि ई निसुणिसिइं, चेत्र प्रवाडिनि एय। तीहं बइठाई जान फलो, होसिइ निरमल देह ॥३६
प्रति मभय.
(१३८) माणिक्य सूरि (१६७) राजीमती उपालंभ स्तुति गा० १८
आदि-पसूवाड़ दीठउ प्रभो जीण वेलां, तजी राज राजीमती तीणं हेला । हुसी जीव संघारू रे जीण जाति, पछइ पाछिला काज रे तीरणं
भाति ।।१ अन्त-मनि वनि काया करी सील पाली, रमइ रायमइ मुगति सिर
हाथि ताली। कहइ सुगुरु माणिक्कसूरि महुर वाणी, जयउ संघ समुदाय
राजलि राणी ॥१८
प्रति० अभय
(१३६) डुगरु (१६८) ओलंभड़ा बारहमासा गा० २८
प्रादि-तोरणि वालंभु आवीउ, जादव कुल के रउ चंदु ।
पसूय देखि रहु वालीउ, विहि विसि हज विच्छंदु ॥१
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