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अज्ञात चौदहवीं सदी
[ ८९ तिम करिवउं जिम नवि छीपीइ, चिरकालिइ निरमल दीपीइ ॥ १ जिण द्रवि वाघइ बह संसार, प्रोछइ कुलि लाभइ अवतार ।
नरय तणी गति छेप्रण बहु, तउ टालेज्यो जिण द्रवि सहू ।।२ अन्त-सोम सूदर सरि तणइ पसाइ, अलिप्र विधन सवि दरिं जाई कीधी चउपई पणयालीस, जिण चउवीसह नाम उसीस ॥४५
इति देव द्रव्य परिहार चउपइ समाप्ता । . संवत् १५४२ वर्षे का. व. १२ दिने श्रीमति कर्करी नगरे पूज्य पं. शुभवीर गणि पाद शिष्य प. अभय कल्याण गणि तिलक वल्लभ गणिभिलेखि श्रीऽस्तु
[प्र. जैन सत्य प्रकाश क्रमाङ्क ११६] वि. सोमसुन्दरी सूरि स्वर्ग सं. १४६६
(१२१) अज्ञात
(१४२) मृगा पुत्र कुलक मा० ४० प्रादि-नमवि सिरि वीर जिण, जणिय जण सिव सुदो।
कम्मवण गहण, निद्दहण जो हम वहो । भाषिसु भावेण भव भयह भंजण परे ।
मिआ पुत्तस्स मुणिनाह चार बरं ॥१ .. अन्त-तिज़ग समचित्त सिरि वरह सुपवितयं ।
मिआ पुत्तस्स जे भणइ सु चरितयं । .. विवुह विमाण विलसेइ विवहप्परे। लहइ सुह सत्त रज्जाण ते उप्परे ॥४.
इति मृगापुत्र कुलकं समाप्तमिति ।
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