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सिद्धसूरि
पंद्रहवीं सदी
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वि० इससे पहिले के पद्यों में गौतम स्वामी, कालिक सूरि सम्बधी ४ पद्यों के बाद खरतर गुर्वावली प्रारंभ । जिसमें जिनवधन सूरि तक के नाम, फिर कुशल सूरि का एक छप्पय - " कुशल बडो संसारि", इसके बाद “दससय चौबीसेहिम”, जिणदत्त सूरि नदी, नागदेव वर सावयण, बाले पद्य
है ।
( महो० विनयसागर जी गुटका नं. ३३ )
( ११३) सिद्धसूरि
(१३२) पाटण चंत्य परिपाटी गा० ६४ संवत् १४७६ । प्रादि-निय गुरु पाय पणमेवि, सरसति सामिणी मन धरिय । हियड़इ हरस धरेवि, गोयम गणहर अणुसरियः । - पभणिसु चेत प्रवाड़ि अणहिलपुर पट्टण तणिय ।
मुझ मन खरीय रहाड़ि, दिउ मति निरमल अति घणीय ॥ १
अन्त - पट्टण प्रसिद्ध हरखि किद्धी चैत प्रवाड़ि सुहामण ।
भतां गुणतां श्रवणि सुरगतां, अतिह छइ रलियामणी । भण्या जिकेइ नाम तेइ, श्रवर जे छइ ते सही । छिहत्तर वरसई, मन हरिसइ, सिद्ध सूरिदइ कही ॥ ६४ स्थान – जैसलमेर भंडार प्रतिलिपि - अभय जैन ग्रन्थालय |
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