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हिलेरी का संकल्प
सर एडमंड हिलेरी माउन्ट एवरेस्ट की चोटी पर कदम रखने वाले पहले पर्वतारोही थे। २९ मई, १९५३ को इसकी २९,००० फीट ऊंची चोटी पर उन्होंने विजय पाई। इस सफलता के लिए उन्हें 'सर' की उपाधि से विभूषित किया गया।
लेकिन बहुत कम ही लोग यह बात जानते हैं कि इस सफलता के पहले हिलेरी को बुरी तरह से असफलता का सामना करना पड़ा था।
इस सफलता से एक वर्ष पहले वे अपने पहले प्रयास में असफल हो चुके थे इंग्लैंड के पर्वतारोहियों के क्लब ने उन्हें अपने मेंबरों को संबोधित करने के लिए आमंत्रित किया।
हिलेरी जब मंच पर चढ़े तब सैंकड़ों लोगों की तालियों से हाल गूंज उठा। वहां मौजूद लोग हिलेरी की असफलता को भी सम्मानजनक मानकर उनका अभिवादन कर रहे थे।
लेकिन हिलेरी जानते थे कि वे उस विराट पर्वत से हारे हुए थे। वे माइक पर नहीं गए और मंच के एक कोने पर लगी माउन्ट एवरेस्ट की तस्वीर के सामने जाकर खड़े हो गए।
उनहोंने दो पल उस तस्वीर को गौर से देखा । फ़िर उसकी और अपनी बंधी हुई मुट्ठी तानकर ये ऊंचे स्वर में बोले "माउन्ट एवरेस्ट, तुमने मुझे एक बार हरा दिया पर अगली बार नहीं हरा पाओगे क्योंकि तुम तो उतना ऊंचा उठ चुके हो जितना तुम्हें उठना था लेकिन मेरा ऊंचा उठना अभी बाकी है"।
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