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दानी कौन?
सुप्रसिद्ध रूसी लेखक इवान तुर्गनेव अत्यन्त कुलीन व संपन्न परिवार में जन्मे थे। एक बार उन्हें रास्ते में एक बूढा भिखारी दिखाई दिया। उसके होंठ ठण्ड से नीले पड़ चुके थे
और मैले हांथों में सूजन थी। उसकी हालत देखकर तुर्गनेव द्रवित हो उठे। वह ठिठक कर रुक गए।
भिखारी ने हाथ फैलाकर दान माँगा। तुर्गनेव ने कोट की जेब में हाथ डाला, बटुआ वह शायद लाना भूल गए थे।
तुर्गनेव को बड़ी ग्लानि हुई। वे बड़ी उलझन में फंस गए। कुछ क्षणों तक किम्कर्तव्यविमूढ रहने के बाद उन्होंने भिखारी की और देखा और उसके दोनों हाथ अपने हाथों में लेकर बोले - "मैं बहुत शर्मिंदा हूँ, मित्र। आज मैं अपना बटुआ घर भूल आया हूँ और कुछ भी नहीं दे सकता। बुरा मत मानना।"
भिखारी की आँखों से दो बूंद आंसू टपक पड़े। उसने बड़े अपनत्व से तुर्गनेव की ओर देखा। उसके होंठों पर हलकी सी मुस्कराहट आई और वह तुर्गनेव के हाथों को धीमे से दबाकर बोला - "कृपया आप शर्मिंदा न हों। मुझे बहुत कुछ मिल गया है जिसका मूल्य पैसे से कहीं बढ़कर है। ईश्वर आपको समृद्धि दे।"
भिखारी तो अपनी राह चला गया पर तुर्गनेव कुछ देर वहीं ठगे से खड़े रहे। उन्हें प्रतीत हआ की दान उन्होंने नहीं वरन भिखारी ने दिया है।
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