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कभी हार नहीं मानो
यह सही है कि विंस्टन चर्चिल को हम भारतीय उनकी ब्रिटिश अकड़ और गांधीजी के प्रति उनके कड़वे उद्गारों के लिए नापसंद करते हैं पर अंग्रेज और संसार के दूसरे देश के लोग निर्विवाद रूप से चर्चिल को विश्व के महानतम राजनीतिज्ञों में रखते हैं।
चर्चिल को आठवीं कक्षा पास करने में तीन साल लग गए क्योंकि वे अंग्रेजी में बहत कमज़ोर थे। वे ही एकमात्र गैर-साहित्यकार व् राजनीतिज्ञ हैं जिन्हें अपनी पुस्तक "The Gathering Storm" के लिए साहित्य का नोबल पुरस्कार मिला। इस पुस्तक में द्वितीय विश्व युद्ध का इतिहास है। जिन्होंने भी चर्चिल की भाषा पढ़ी है वे इस बात पर यकीन नहीं कर सकते कि चर्चिल पढाई में सदैव औसत विद्यार्थी ही रहे।
यह चर्चिल के जीवन के अन्तिम वर्षों की घटना है। एक बार ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी ने चर्चिल को अपने दीक्षांत समारोह में मुख्य अतिथि के तौर पर आमंत्रित किया।
चर्चिल अपनी सामान्य वेशभूषा में वहां गए - मुंह में मोटा सिगार, बेंत की छड़ी, और सर पर ऊंचा हैट। जब वह माइक पर पहुंचे तब लोगों ने खड़े होकर उनका अभिवादन किया। असाधारण प्राधिकार से उन्होंने उनका अभिवादन स्वीकार किया और असीम आत्मविश्वास से माइक पर खड़े रहे। मुंह से सिगार निकालकर उन्होंने अपना हैट माइक के स्टैंड पर रखा। लोग उनसे कुछ सुनने को बेताब थे। अपूर्व तेजमयी वाणी में उन्होंने अपना संदेश दिया - "कभी हार नहीं मानो! (Never give up)"
हज़ार शब्दों का संदेश भी इतना प्रभावकारी नहीं हो सकता था। तालियों की गड़गडाहट से पूरा हाल गूंजता रहा। अपनी आँखों में चमक लिए चर्चिल कुछ सेकंड तक सबको देखते रहे। उन्होंने फ़िर से कहा - "कभी हार नहीं मानो!" पहले से भी ज्यादा तालियों की गड़गडाहट के साथ उन्होंने सिगार और हैट थामने के लिए हाथ बढ़ाया और मंच से नीचे उतर आए। उनका दीक्षांत भाषण पूरा हो चुका था
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