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श्रमण सूक्त
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नासदीपलियकेसु न निसेज्जा न पीढए ।
निग्गथाऽपडिलेहाए
बुद्धवुत्तमहिट्टगा ।।
(दस ६ ५४)
तीर्थकरो के द्वारा प्रतिपादित विधियो का आचरण करने वाले निर्ग्रन्थ आसन्दी, पलग, आसन और पीढे का (विशेष स्थिति में उपयोग करना पडे तो) प्रतिलेखन किये बिना उन पर न बैठे और न सोये ।
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