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३५५ नो इत्थीहि सद्धि सन्निसेज्जागए विहरित्ता हवइ, से निग्गथे।
(उत्त १६ ५ जो स्त्रियो के साथ पीठ आदि एक आसन पर नहीं बैठता, वह निर्ग्रन्थ है।
३५६ नो इत्थीण इदियाइ मणोहराइ मणोरमाइ आलोइत्ता निज्झाइत्ता हवइ से निग्गथे।
(उत्त १६ ६) जो स्त्रियो की मनोहर और मनोरम इन्द्रियों को दृष्टि गडाकर नहीं देखता, उनके विषय मे चिन्तन नहीं करता वह निर्ग्रन्थ है।
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३६० नो विलवियसद्द वा, सुणेत्ता हवइ, से निग्गथे।
(उत्त १६ ७) जो स्त्रियों के विलाप के शब्दो को नहीं सुनता वह निर्ग्रन्थ है।